Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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सम्बन्धकारिका - १२
तस्माच्छ्रेयः
सदोपदेष्टव्यम् ।
हि, हितोपदेष्टाऽनुगृह्णाति ।। ३० ।।
श्रममविचिन्त्यात्मगतं, श्रात्मानं च परं च टीका : हितवचनानां श्रवणैः सर्वेषामेव श्रोतॄणां एकान्ततः धर्मो भवत्येवेति न निश्चयः किन्तु अनुग्रह (कृपा) बुद्धचा उपदेशकर्तृणां तु निश्चितमेव धर्मो भवति ।। २६ ।। तस्मात् कारणात् स्वपरिश्रमस्य विचारं नैव कृत्वा सर्वदा कल्याणकारकोपदेश: कर्त्तव्यः, यतो हितोपदेष्टा (मोक्षमार्गोपदेष्टा ) लोकेभ्योऽनुग्रहं करोति ।। ३० ।।
अर्थ : इस हितरूप श्रुत के श्रवण से सभी सुनने वालों को एकान्ततः धर्म की प्राप्ति हो ही जाती हो, ऐसा नियम नहीं किन्तु अनुग्रहबुद्धि से जो उसका कथन करता है, उसको तो नियम से धर्म का लाभ होता ही है ॥ २६ ॥ अतः अपने श्रम का विचार किये बिना मोक्षमार्गरूप श्रुत का उपदेश करना, यह कल्याणकारक है । हितकारी उपदेश देने वाला वक्ता स्व और पर का अनुग्रह करने वाला होता है ।। ३० ।।
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हिन्दी पद्यानुवाद: • हितरूप श्रुतश्रवण से, सभी धर्म पाते सर्वदा एकान्त ऐसा नियम नहीं है, भाव की है विविधता । बोले अनुग्रहबुद्धि से तो, सत्य है निश्चय यही, एकान्त से सब धर्म होते, शास्त्र भी कहते यही ॥ • इस हेतु जनकल्याणकारी देना धर्मोपदेश ही यह श्रम नहीं संजीवनी है, भवभवों के भ्रमण की । उपदेश करते जो हितों का, स्वपरहित को साधते भवसिन्धु नौ सम वे गुरु हैं, स्वयं तरते-तारते ॥ मोक्षमार्गोपदेश ही हितोपदेश है
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नर्ते च मोक्षमार्गा-द्वितोपदेशोऽस्ति जगति कृत्स्नेऽस्मिन् । तस्मात् परमिममेवेति, मोक्षमार्ग प्रवक्ष्यामि ॥ ३१ ॥
टीका : अस्मिन् संसारे मोक्षमार्गं विनाऽन्यः कश्चित् हितोपदेशो नास्ति, अस्माद्धेतोः सर्वश्रेष्ठोऽयं मोक्षमार्गः, तमेव मोक्षमार्गमहं ( उमास्वातिवाचकः) प्रवक्ष्यामि - कथयिष्यामीति भावः ।। ३१ ।।
अर्थ : इस संसार में मोक्षमार्ग के सिवाय अन्य किसी भी प्रकार का उपदेश हितकारीकल्याणकारी नहीं बन सकता है । अतएव मैं ( ग्रन्थकर्ता - उमास्वाति ) यहाँ केवल मोक्षमार्ग का ही वर्णन - व्याख्यान करूंगा ।। ३१ ।।
मार्ग केवल श्रेय है,
हिन्दी पद्यानुवाद: • अखिल जग में मोक्ष का ही, छोड़कर इसको सभी पथ, दुःख के आधेय हैं । उत्कृष्ट जानकर इसका वर्णन करूंगा मैं यहाँ यह सुनकर श्रद्धा से भवि ! शिवपन्थ में चलते जहाँ ।।
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॥ इति सम्बन्धकारिका ॥