Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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मूलसूत्रम्
* तस्याधारस्थानम्
श्रुतं मतिपूर्वं द्वचनेकद्वादशभेदम् ।। १२० ॥
(१) मई पुब्वं जेरण सुध्रं न मई सुपुव्विश्रा ।
[ नं दिसूत्र - २४ ]
(२) सुयनाणे दुविहे पण्णत्ते । तं जहा - अंगपविट्ठ े चेव, श्रंगबाहिरे चेव । [स्थानाङ्ग-स्थान-२, उद्देश - १, सूत्र - ७१ / २१] (३) से कि तं अंगपविट्ठ ? दुवालसविहं पण्णत्तं । तं जहा - [१] श्रायारो [२] सुयगडे - [३] ठाणं [४] समवाश्रो [५] वियाहपण्णत्ती [६] नायाधम्मकहाश्रो [७] उवासगदसा [८] अंतगडदसाश्रो [C] प्रणुत्तरोववाइश्र दसानो विवाग [१२] दिट्टिवा ।
[१०] पण्हावागरणाई
[११]
[नं दिसूत्र- ४४]
मूलसूत्रम्
द्विविधोऽवधिः ॥ १-२१॥
* तस्याधारस्थानम्
तं
( १ ) से किं तं श्रहिनाणं पच्चकुखं । श्रहिनाण- पच्चकखं दुविहं । जहा - भवपच्चइियं च खाग्रोवसमिश्रं च ।
मूलसूत्रम्
(२) श्रहिना दुविहे पण्णत्ते ।
चेव ।
भवप्रत्ययो नारक - देवानाम् ।। १-२२ ।।
* तस्याधारस्थानम् -
[ नंदिसूत्र - ६ ] तं जहा - भवपच्चइए चेव खप्रोवसमिए [स्थानाङ्ग-स्थान-२, उद्देश - १, सूत्र - ७१ / १३ ]
(१) दोहं भव पचचइए पण्णत्ते ।
तं जहा - देवाणं चेव नेरइयाणं चेव || [स्थानाङ्ग-स्थान-२, उद्देश - १, सूत्र- ७१ / १४]
(२) से किं तं भवपच्चइयं ? दुण्हं तं जहा- देवाण य नेरइयाण य ॥
( ७ )
[ नंदिसूत्र ७]
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