Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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सर्वज्ञ विभु श्रीतीर्थंकरभगवन्तों ने अर्थरूप त्रिपदी सुनाई, उससे ही श्रुतकेवली गणधरभगवन्तों ने सूत्ररूपे सारी द्वादशाङ्गी रची और ज्ञानी महापुरुषोंप्राचार्य महाराजादि द्वारा शास्त्रों की व्याख्या का विस्तार संक्षेप में सूत्रों में किया गया है। सूत्र एक प्रकार से सिन्धु को बिन्दु रूप में अन्तर्हित करने की क्षमता वाले होते हैं। अर्थात् 'बिन्दु में सिन्धु' सूत्र है।
5 तत्त्वार्थाधिगमम्'जीवाजीवास्रवबन्धसंवरनिर्जरामोक्षाः सप्ततत्त्वाः' एतेषां तत्त्वानां यथार्थस्वरूपैः मौलिकत्वेन ग्रहणं अर्थात् स्वभावरूपैः तद् स्वरूपस्यैवार्थग्रहणं तत्त्वार्थाधिगमम् ।
* हिन्दी भावार्थ
जीव, अजीव, प्रास्रव, बन्ध, संवर, निर्जरा तथा मोक्ष ये सात तत्त्व हैं। इन सातों तत्त्वों का यथार्थ स्वरूप से तद् स्वरूपजन्य बोध करना तत्त्वार्थाधिगम कहा जाता है। तत्त्वों का निश्चयात्मक स्वरूप ही होता है तथा उनका उसी स्वरूप में बोध होना तत्त्वार्थाधिगम है। तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम्तत्त्वार्थानां सूत्राणां पुष्पस्तबकमिव ग्रन्थना तत्त्वार्थाधिगमसूत्राणि । तत्त्वार्थसूत्राणां ग्रन्थना गुम्फना वा रचना सूत्रकारमहर्षिश्रीउमास्वातिवाचकप्रवरेण कृता ।
यतः तत्त्वार्थाधिगमसूत्रेति ख्यातः ग्रन्थोऽयम् । * हिन्दी भावार्थ
तत्त्वार्थों की सूत्ररूप में गुम्फना या रचना प्रसिद्ध सूत्रकार महर्षि पूर्वधर वाचकप्रवर श्रीउमास्वाति महाराज द्वारा की गयी है। अतः यह ग्रन्थ 'तत्त्वार्थाधिगमसूत्रम्' के नाम से सुप्रसिद्ध है ।
विजय सुशीलसूरिः
विजयादशमी
दिनांक ६-१०-६२
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लेटा
जिला-जालोर, राजस्थान
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