Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 165
________________ है। आपने लगभग १२५ से भी अधिक पुस्तकों की रचना की है। साहित्य-सृजन का आपका उद्देश्य है मानवीय मूल्यों-प्रेम, सेवा, करुणा, प्रभभक्ति और परमार्थ भावों को जागृत करना। आपकी लघता में विनय की पराकाष्ठा झलकती है। ज्ञान-गरिमा को आपने विनय में समाविष्ट कर लिया है। तीर्थोद्वार में आपकी रुचि अद्वितीय है। आप कहते हैं- तीर्थ संस्कृति के अनपम केन्द्र हैं। समाज को सप्तव्यसनों से मुक्त करने हेतु वे कर्मयोगी सतत जागरूक हैं। कवि महर्षि भर्तृहरि के शब्दों में वे 'अलंकरणं भवः' । हैं। वे हिन्दी, संस्कृत, 'प्राकृत, गुजराती आदि भाषाओं के पंडित हैं, तथा साहित्यशिरोमणि, सहृदय, महर्षि हैं। करुणासागर को शत-शत प्रणाम। अलंकरण १. साहित्यरल, शास्त्रविशारद एवं कवि भूषण अलंकरण- श्री चरित्रनायक को मंडारा में पूज्यपाद आचार्य भगवन्त श्रीमद् विजय-दक्ष सूरीश्वरजी म.सा. के वरदहस्त से अर्पित हैं। जैनधर्मदिवाकर- वि.सं. २०२७ में श्री जैसलमेर तीर्थ के प्रतिष्ठा-प्रसंग पर श्री संघ द्वारा। ३. मरुधर देशोद्धारक- वि.सं. २०२८ में रानी स्टेशन के प्रतिष्ठा प्रसंग पर श्रीसंघ द्वारा। ४. तीर्थ प्रभावक- वि.सं. २०२९ में श्री चंवलेश्वर तीर्थ में संघमाला के भव्य प्रसंग पर श्री केकड़ी संघ द्वारा। राजस्थान दीपक- वि.सं. २०३१ में पाली नगर में प्रतिष्ठा प्रसंग पर श्रीसंघ द्वारा। ६. शासनरत्न-वि.सं. २०३१ में जोधपुर नगर में प्रतिष्ठा-प्रसंग पर श्रीसंघ द्वारा। ७. श्री जैन शासन शणगार- वि.स.२०४९ मेड़ता शहर में श्री अंजनशलाका प्रतिष्ठा महोत्सव के प्रसंग पर

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