Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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१।६ ]
प्रथमोऽध्यायः
[ १६
घटित करना चाहिए। जीवादि तत्त्वों का भी नामादि चार निक्षेप जान करके अर्थ का विभाग करना चाहिए, किन्तु मोक्षमार्ग के लिए तो उनको एकभावरूप जानें । कारण कि भावनिक्षेप बिना प्रथम के तीनों निक्षेप निष्फल हैं । निक्षेप जो हैं वे मूल वस्तु-पदार्थ के पर्याय हैं, इतना ही नहीं किन्तु स्वधर्म हैं । इसलिए तो विशेषावश्यक भाष्य में कहा है कि - ' चत्तारो वत्थु पञ्भवा ।' श्रीश्रनुयोगद्वार सूत्र में भी विस्तारपूर्वक वर्णन किया है ।
द्रव्य और भाव ये दोनों निक्षेप सापेक्ष हैं । इसलिए तो एक ही वस्तु-पदार्थ का एक अपेक्षा से द्रव्यनिक्षेप में और दूसरी अपेक्षा से भावनिक्षेप में भी समावेश किया जाता है । जैसे- दधि यानी दही शिखण्ड की अपेक्षा से द्रव्य शिखण्ड है, दूध की अपेक्षा से द्रव्य दूध है और दही की अपेक्षा से भाव दही है । इसी तरह अन्य घट, पट इत्यादि में भी समझना । यहाँ पर इतना ध्यान अवश्य ही रखना है कि जो वस्तु भावनिक्षेप से पूज्य या त्याज्य है, उस वस्तु के अन्य तीन निक्षेप भी पूज्य या त्याज्य हैं ।। ५ ।।
* तत्त्वज्ञानस्योपायः
प्रमाण - नयैरधिगमः ॥ ६ ॥
* सुबोधिका टीका
पूर्वोक्त-जीवादितत्त्वानां प्रमाणाद् नयाद् वा श्रधिगमं ज्ञानं जायते । न पदार्थस्य सर्वदेशानां अर्थात् प्रत्येकमंशस्य ज्ञानं भवति तत् प्रमाणम्, एवं येन पदार्थस्य केवलमेकदेशः अर्थात् कश्चिदेवांशो ज्ञायते स नयः कथ्यते । तत्र प्रमाणं द्विविधं परोक्षं प्रत्यक्षं चाऽग्रे वक्ष्यते । नयवादान्तरेण । नयाश्च नैगमादयोऽपि अग्रे वक्ष्यन्ते एव ।। ६ ।।
* सूत्रार्थ - [ जीवादि तत्त्वों-पदार्थों का ] प्रमारण और नयों से अधिगम होता है। अर्थात् ज्ञान-बोध होता है । उसमें प्रमाण वस्तु-पदार्थ के सर्वांश को ग्रहण करता है और नय वस्तु-पदार्थ के एक अंश को ग्रहण करता है ॥ ६ ॥
5 विवेचन 5
जिससे वस्तु का निर्णयात्मक बोध होता है, वह ज्ञान है । विश्व में किसी भी वस्तु का निर्णयात्मक अधिगम-ज्ञान-बोध प्रमाण और नय द्वारा ही होता है । इसलिए प्रमाण और नय ज्ञान स्वरूप ही हैं । अर्थात् जीवादि तत्त्वों के जानने का ज्ञानरूप उपाय - साधन प्रमाण और नय इस तरह दो प्रकार का है। जिससे वस्तु के नित्य - अनित्यादि अनेक धर्मों का निर्णयात्मक ज्ञान- बोध होता है, उसे 'प्रमाण' कहते हैं तथा जिससे वस्तु के नित्य श्रनित्यादि किसी भी एक धर्म का निर्णयात्मक ज्ञान-बोध होता है, उसे 'नय' कहते हैं । अर्थात् सम्यग्ज्ञान को प्रमाण और प्रमाण के एकदेश- अंश को नय कहा जाता है ।