Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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१।२४ ] प्रथमोऽध्यायः
[ ५५ चरित्र में 'परमावधिज्ञान' उत्पन्न होने के पश्चात् अन्तर्मुहूर्त में अवश्य ही पंचम केवलज्ञान उत्पन्न होता है। उसका समावेश इसी अवस्थित-अप्रतिपाती अवधिज्ञान में होता है।
विशेष-अवधिज्ञानावरण के क्षयोपशम रूप अन्तरंग निमित्त के दोनों ही स्थल समान रूप से होते हुए भी बाह्यकारण तथा उसके नियम के भेद से इस अवधिज्ञान के दो भेद कहे हैं। एक भवप्रत्यय अवधिज्ञान और दूसरा क्षयोपशमनिमित्तक अवधिज्ञान। इसके अलावा अवधिज्ञान के देशावधि, परमावधि और सर्वावधि ये तीन भेद भी बताये हैं और कहा है कि-देशावधिज्ञान देव, नारकी, तिर्यंच और सागार मनुष्य को हो हाता है तथा परमावधिज्ञान और सर्वावधिज्ञान मुनियों के ही होते हैं। ऐसा उल्लेख दिगम्बरों के गोम्मटसार जीवकाण्ड आदि ग्रन्थों में मिलता है ।। २३ ॥
* मनःपर्ययज्ञानस्य भेदाः * ऋजु-विपुलमती मनःपर्ययः ॥ २४॥
* सुबोधिका टीका ® पूर्वोक्तमवधिज्ञानम् । अत्र मनःपर्ययज्ञानं कथयिष्यामः । मनःपर्ययज्ञानं द्विप्रकारकं भवति । तद्यथा-ऋजुमतिमनःपर्ययज्ञानं विपुलमतिमनःपर्ययज्ञानं चेति । अर्थात्-मनःपर्ययज्ञानस्य ऋजुमतिः विपुलमतिश्चेति द्वौ भेदी स्तः ।
ॐ सूत्रार्थ-मनःपर्ययज्ञान के दो भेद हैं। एक ऋजुमतिमनःपर्ययज्ञान और दूसरा विपुलमतिमनःपर्ययज्ञान ।। २४ ।।
卐 विवेचन ॥ इस सूत्र में मनःपर्ययज्ञान के दो भेद प्रतिपादित किये गये है। वह ऋजुमात आर विपूलमति। मनःपर्यय यानी मन के विचार। मनः पर्यय और मनःपर्यव ये दोनों शब्द एक अर्थ के वाचक हैं। जिसके मन होता है, उसको 'संज्ञी' कहा जाता है। वह व्यक्ति विश्व में किसी भी कार्य का या वस्तु-पदार्थ का मन से चिन्तन करता है, उसी समय चिन्तनीय वस्तु-पदार्थ के प्रकार-भेद के अनुसार चिन्तन कार्य की प्रवृत्ति में प्रवृत्तमान हुआ मन भी पृथग्-पृथग यानी भिन्नभिन्न प्राकृति-प्राकार वाला होता है। वे प्राकृतियाँ-पाकार मन की पर्याय हैं। उन पर्यायों को प्रत्यक्ष-साक्षात जानने वाले का ज्ञान, 'मनःपर्ययज्ञान' या 'मनःपर्यवज्ञान' कहलाता है। मनःपर्यय या मनःपर्यवज्ञान के बल से मन चिन्तित प्राकृतियों-आकारों को अवश्य जान लेता है; किन्तु चिन्तनीय ऐसी वस्तु-पदार्थ को नहीं जानता है। अर्थात् -मनःपर्ययज्ञान वाले मन:पर्ययज्ञान द्वारा ढाई द्वीप में रहे हुए संज्ञीपंचेन्द्रिय जीवों के विचारों को जान सकते हैं। पीछे से चिन्तनीय वस्तुपदार्थों का ज्ञान अनुमान द्वारा भी जान सकते हैं। जैसे-कुशल वैद्य-डॉक्टर आदि व्याधिग्रस्त व्यक्ति की मुखाकृति-चेहरा आदि को प्रत्यक्ष-साक्षात् देखकर देह-शरीर में रहे हुए रोग को अनुमान से जान लेते हैं, वैसे इधर भी मनःपर्ययजानी मन की प्राकृतियों-पाकारों को प्रत्यक्ष-साक्षात देखता