Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
View full book text
________________
६० ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे
[ ११२७ प्रश्न–अवधिज्ञान का विषय मन को पर्यायें भी होती हैं, तो क्या उससे मन के विचारों को
___ भी जान सकते हैं ?
उत्तर-हाँ, जान सकते हैं। विशुद्ध अवधिज्ञान से मन के विचार भी अवधिज्ञानी जान सकते हैं। सर्वज्ञ विभु के द्रव्य मन से दिये हुए प्रत्युत्तरों को अनुत्तरदेव अवधिज्ञान से ही जान सकते हैं। प्रश्न-विशुद्ध अवधिज्ञान से भी जब मन के विचारों को जान सकते हैं, तो फिर अवधि
और मनःपर्ययज्ञान इन दोनों में विशुद्धि को दृष्टि से भेद कहाँ रहा? उत्तर–विशुद्ध अवधिज्ञानी मन के विचारों को मनःपर्ययज्ञानी जितनी सूक्ष्मता से जान सकता है उतनी सूक्ष्मता से नहीं जान सकता। कारण कि-जब अवधिज्ञानी रूपी सर्व द्रव्यों को
और अल्प पर्यायों को (विशेष रूप में प्रसख्य पर्यायों को) जान सकता है, तब मनःपर्ययज्ञानी मात्र मनोवर्गणा के पुद्गलों को ही जान सकता है। उसमें भी मात्र ढाई द्वीप और दो समुद्र प्रमाण मनुष्यक्षेत्र में रहे हुए संज्ञी पंचेन्द्रिय जीवों के विचार करने के लिये प्रवृत्ति में लिये हुए मनोवर्गणा के पुद्गलों को ही जान सकते हैं।
सारांश यह है कि क्षेत्र, स्वामी और विषय के सम्बन्ध में अवधिज्ञान की अधिक विशेषता होते हुए भी विशुद्धि के सम्बन्ध में वह अत्यन्त पीछे पड़ जाता है। इसलिये अवधिज्ञान की अपेक्षा मनःपर्ययज्ञान का अधिक महत्त्व है। अर्थात्-अवधिज्ञान की अपेक्षा मनःपर्ययज्ञान में क्षेत्रादिक को न्यूनता-अल्पता होते हुए भी विशुद्धि अधिक होने से उसका (मनःपर्ययज्ञान का) महत्त्व बढ़ जाता है । ॥२६॥
[मनःपर्ययज्ञान के पश्चात् क्रम प्राप्त पंचम केवलज्ञान का निरूपण करना चाहिए। किन्तु इसका विशेष रूप से वर्णन इस तत्त्वार्थाधिगम सूत्र के दसवें अध्याय में किया गया है ।]
पञ्चज्ञानानां ग्राह्यविषयः *
* मति-श्रुतयोः विषयः * मतिश्रुतयोनिबन्धः सर्वद्रव्येष्वसर्वपर्यायेषु ॥ २७ ॥
* सुबोधिका टीका 8. एषां मतिज्ञानादीनां कः कस्य विषयनिबन्धः ? इति । कथ्यतेऽत्र-मतिज्ञानस्य श्रुतज्ञानस्य च विषयभूतानां कतिचित् पर्यायवतां सर्वद्रव्याणां ज्ञानं कर्त्तव्यमस्ति । इदमस्य तात्पर्य यत् ते सर्वाणि द्रव्याणि जानन्ति, किन्तु तेषां सर्वपर्यायान् न जानन्ती त्यर्थः ।। २७ ॥
8 सूत्रार्थ-मतिज्ञान और श्रुतज्ञान का विषय सर्वद्रव्यों में है, किन्तु उनकी परिपूर्ण पर्यायों में नहीं है। अर्थात्-मतिज्ञान और श्रुतज्ञान इन दोनों की प्रवृत्ति