Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 98
________________ ६२ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे * मन:पर्ययज्ञानस्य विषयः तदनन्तभागे मन:पर्ययस्य ॥ २६ ॥ [ ११२६-३० * सुबोधिका टीका तेषां रूपद्रव्याणां अनन्ततमे भागे मनसा परिणत - मनोद्रव्याणि ज्ञातु मन:पर्ययज्ञानस्य विषयोऽस्ति । अवधिज्ञानविषयस्य अनन्तभागं मन:पर्ययज्ञानी जानीते | तथा रूपिद्रव्याणि मनोरहस्यविचारगतानि मानुषक्षेत्रपर्यापन्नानि विशुद्धतराणि चेति ||२६|| * सूत्रार्थ - अवधिज्ञानी से अनन्तवें भाग को ही मन:पर्ययज्ञानी जानते हैं । अर्थात् - मनःपर्ययज्ञान का विषय अवधिज्ञान के विषय से अनन्तवाँ भाग है ।। २६ ।। 5 विवेचन 5 जितना रूपी द्रव्यों को अवधिज्ञानी जान सकता है, उसके अनन्तवें भाग को मन:पर्ययज्ञानी जा सकता है । अर्थात् - जितना विषये अवधिज्ञान का है, उसका अनन्तवाँ भाग मन:पर्ययज्ञान का विषय है । कारण कि - मन:पर्ययज्ञान का विषय अवधिज्ञान के विषय से अनन्तकभाग प्रमाण रूपी द्रव्य है । किन्तु वह भी असर्व न्यून पर्याय होने से अपने विषय की सम्पूर्ण पर्यायों को नहीं जान सकता है । ऐसा होते हुए भी फिर वह अधिकतर सूक्ष्म विषय को विशेष रूप से जानता है I इसलिए मन:पर्ययज्ञान प्रशस्त है । सारांश यह है कि - मन:पर्ययज्ञानी प्राये हुए रूपी द्रव्यों को तथा मनुष्य क्षेत्रवर्ती अवधिज्ञान की अपेक्षा से अतिशय विशुद्ध-सूक्ष्मतर तथा अनेक पर्यायों से उन रूपी द्रव्यों को जान सकता है ||२६|| * केवलज्ञानस्य विषयः सर्वद्रव्य - पर्यायेषु ॥ ३० ॥ * सुबोधिका टीका सर्वद्रव्येषु तथा सर्वपर्यायेषु केवलज्ञानस्य विषयो भवति । अर्थात् विश्वे विद्यमानानि सर्वद्रव्याणि तथा तेषां सर्वपर्यायाणि च केवलज्ञानस्य विषयः, स च सर्वभावग्राहकस्तथा समस्तलोकालोकविषयकश्च । अस्मात् किमपि अन्यद् ज्ञानं श्रेष्ठं न भवति । न च केवलज्ञानविषयात् परं यत्किञ्चिदन्यज्ज्ञेयमस्ति । केवलं निरपेक्षं परिपूर्णं समस्तभावज्ञापकं समग्रमसाधारणं विशुद्ध लोकालोकविषयमनन्तपर्यायमित्यर्थः ।। ३० ।। * सूत्रार्थ - केवलज्ञानी सर्व द्रव्यों को उनकी सर्व पर्यायों सहित जानते हैं । अर्थात् समस्त द्रव्यों को और उनकी समस्त पर्यायों को जानना तथा देखना यह केवलज्ञान का विषय है ।। ३० ।।

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