Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 112
________________ ७६ ] श्रीतत्त्वार्थाधिगमसूत्रे [ ११३५ (५) शब्दस्य बोधकः शब्दनयः । (६) अर्थस्य बोधकः समभिरूढः । (७) शब्दस्य अर्थस्य च बोधकः एवंभूतनयः । * सूत्रार्थ-प्रथम (नैगम) नय के दो भेद हैं-एक देशपरिक्षेपी और दूसरा सर्वपरिक्षेपी। तथा शब्दनय के तीन भेद हैं-साम्प्रत, समभिरूढ़ और एवम्भूत ।। ३५ ॥ ॐ विवेचन नेगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजूसूत्र और शब्द ये पाँच नय हैं। नैगम और शब्दनय के यथाक्रम दो और तोन भेद हैं। यहाँ नयों के पाँच भेद सामान्य से प्रतिपादित किये गये हैं। किन्तु इसमें और भी विशेषता यह है कि नैगम के देशपरिक्षेपी और सर्वपरिक्षेपी दो भेद कहे हैं तथा शब्द नय साम्प्रत, समभिरूढ़ और एवम्भूत तीन भेद कहे हैं । प्रश्न-पूर्व सूत्र में और इस सूत्र में नयों के जितने भेद प्रतिपादित किये गये हैं, उनके लक्षण क्या-क्या हैं ? उत्तर-निगम नाम जनपद-देशका कहा जाता है। उसमें जो शब्द जिस अर्थ के लिए नियत है, वहाँ उस अर्थ के और शब्द के सम्बन्ध को जानने का नाम नैगमनय है। इस शब्द का यह अर्थ है तथा इस अर्थ के लिये इस शब्द का प्रयोग करना; इस प्रकार के वाच्य और वाचक सम्बन्ध के ज्ञान को नैगमनय कहते हैं। (१) नैगमनय-गम यानी दृष्टि-ज्ञान। जिसकी अनेक दृष्टियाँ हैं वह नैगम । अर्थात् नैगमनय की अनेक दृष्टियां हैं। इस नैगमनय की दृष्टि से व्यवहार में होती हुई लोकरूढ़ि है । इस नय के मुख्य तीन भेद हैं जिनके नाम (१) संकल्प, (२) अंश और (३) उपचार हैं । (१) संकल्प-संकल्प को सिद्ध करने के लिए जो कोई भी अन्य प्रवृत्ति करने में आती है, उसे भी संकल्प की ही प्रवृत्ति कही जाती है। जैसे कि-जैनधर्मी श्रीमान् जिनदास ने वि. सं. २०४७ की पौष सुद छठ दिन के शुभ प्रसंग पर तीर्थाधिराज श्री शत्रुञ्जय-सिद्धगिरिजो महातीर्थ की यात्रा पर जाने का संकल्प-निर्णय किया। साथ में ले जाने के लिए भाता तथा वस्त्र वगैरह की सामग्री तैयार कर अपनी मंजूषा-पेटी में भरने लगा। उसी समय वहाँ पर बाहर से आये हुए सार्मिक बन्धु श्रीमान् धर्मदास ने पूछा “भाई ! आप कहाँ जाते हो?" जिनदास ने कहा-"मैं पालीताणा-श्रीशत्रुञ्जय महातीर्थ की यात्रा करने के लिये जाता हूँ।" यहाँ पालीताणा जाने की और श्री शत्रुञ्जय महातीर्थ की यात्रा करने की क्रिया तो भविष्य में होने वाली है, वर्तमानकाल में तो मात्र उसकी तैयारी हो रही है। वर्तमान में पालीताणा तरफ गमन न होते हुए भी वर्तमानकालीन प्रश्न और उत्तर दोनों संकल्प रूप नैगमनय की दृष्टि से सत्य हैंसच्चे हैं। कारण कि व्यक्ति ने जब से जाने का संकल्प किया तब से वह संकल्प जहाँ तक पूर्ण न हो

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