Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti

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Page 130
________________ सम्बन्धकारिका - २ अर्थ : कर्मक्लेशों से अनुबद्ध इस जन्म में ऐसे प्रयत्न करने चाहिए जिनसे कर्म और कषायों का सर्वथा विनाश हो, प्रभाव हो । यही परमार्थ है ।। २ ।। हिन्दी पद्यानुवाद: • कर्मक्लेशों से अनुबद्ध, दुःखदायी इस जन्म में, प्रयत्न ऐसा कीजिए, हो नाश क्लेशों का जिसमें । कर्मक्लेशों का ही ये सर्वथा नाश परमार्थ है,... परमार्थ साधन के लिए, इस विश्व में पुरुषार्थ है | पुण्यानुबन्धी पुण्य का अनुबन्ध परमार्थालाभे वा, दोषेष्वारम्भक स्वभावेषु । कुशलानुबन्धमेव स्यादनवद्यं यथा कर्म ॥ ३ ॥ टीका : आरम्भकारकस्वभाववत् कषायरूपाणां दोषाणां कृते यदि परमार्थमोक्षस्य प्राप्तिर्न भवेत् तर्हि यया रीत्या मोक्षस्यानुकूलपुण्यानुबन्धं भवेत् तया रीत्या निरवद्य (निष्पाप : ) कार्यं कुर्यात् ।। ३ ।। अर्थ : प्रारम्भ में प्रवर्त्ताने के स्वभाव वाले ऐसे कषायादि दोषों की विद्यमानता के कारण परमार्थ न हो सके (अर्थात् कर्म और कषायों का सर्वथा विनाश प्रभाव न हो सके ) तो भी कुशल कर्म का - पुण्यानुबन्धी पुण्य का अनुबन्ध हो सके, इस भाँति निरवद्य अर्थात् पापरहित कार्य प्रयत्नपूर्वक करने चाहिए ॥ ३ ॥ 1 हिन्दी पद्यानुवाद: • सिंह गज सम रागद्वेष प्रति गाढ़ दोष हैं विश्व में करते निरन्तर विघ्न ये परमार्थ के शुभ पन्थ 1 संसार की ही वृद्धि करनी यह दोष इनके स्वभाव का, चलते हुए निरवद्य पथ में, कुशलानुबन्धी भाव का ।। छह प्रकार के मनुष्य कर्माहितमिह चामुत्र चाधमतमो नरः समारभते । इह फलमेव त्वधमो, विमध्यमस्तूभयफलार्थम् ॥ ४ ॥ परलोकहितायैव, प्रवर्तते मध्यमः क्रियासु सदा । मोक्षायैव तु घटते, विशिष्टमतिरुत्तमः पुरुषः ।। ५ ।। यस्तु कृतार्थोऽप्युत्तममवाप्य धर्मं परेभ्य उपदिशति । नित्यं स उत्तमेभ्योऽप्युत्तम इति पूज्यतम एव ॥ ६ ॥ तस्मादर्हति पूजा - मर्हन्नेवोत्तमोत्तमो लोके । देवष - नरेन्द्रेभ्यः, पूज्येभ्योऽप्यन्यसत्त्वानाम् ॥ ७ ॥

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