Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
View full book text
________________
१७ ] प्रथमोऽध्यायः
[ २३ मिलाने से अधिक हो जाता है। इसलिए उत्कृष्ट से साधिक ६६ सागरोपम का काल कहा जाता है। (६) सम्यग्दर्शन के क्षायिक, औपशमिक और क्षायोपशमिक ये मुख्य तीन भेद हैं।
* प्रश्न-जीव किसे कहते हैं ? उत्तर--जो द्रव्य प्रौपशमिक आदि भावों से युक्त है, उसे जीव कहते हैं । * प्रश्न-सम्यग्दर्शन किसे कहते हैं ? उसका स्वरूप क्या है ?
उत्तर--वह जीव-आत्मा द्रव्य स्वरूप है। कारण कि वह नोस्कन्ध और नोग्राम रूप अरूपी सम्यग्दृष्टि जीव स्वरूप ही होता है।
प्रश्न--सम्यग्दर्शन किसकी अपेक्षा से होता है ?
उत्तर--आत्मसंयोग, परसंयोग और उभयसंयोग, इन तीनों की अपेक्षा से सम्यग्दर्शन होता है। जैसे-(१) सम्यग्दर्शन का स्वामी जीव है। इसलिए आत्मसंयोग की अपेक्षा सम्यग्दर्शन जीव को होता है। (२) परसंयोग की अपेक्षा सम्यग्दर्शन एक जीव को या एक अजीव को होता है । अथवा दो जीवों को या दो अजीवों को होता है। यद्वा अनेक जीवों को या अनेक अजीवों को सम्यरदर्शन हो सकता है। (३) उभयसंयोग की अपेक्षा सम्यग्दर्शन के स्वामित्व में एक जीव के, नोजीवईषत् जीव के, दो जीव के या दो अजीव के, अनेक जीवों के या अनेक अजीवों के ये विकल्प नहीं होते हैं । इनके बिना अन्य विकल्प हो सकते हैं।
* प्रश्न--सम्यग्दर्शन किसके द्वारा होता है ?
उत्तर-सम्यग्दर्शन निसर्ग और अधिगम इन दो हेतु-कारणों से उत्पन्न होता है। ये दोनों दर्शन मोहनीय कर्म के क्षय, उपशम या क्षयोपशम से होते हैं।
अधिकरण तीन प्रकार का कहा है-आत्मसन्निधान, परसन्निधान और उभयसन्निधान । इनमें प्रात्मसन्निधान से अभिप्राय अभ्यन्तर सन्निधान है। परसन्निधान का अभिप्राय बाह्यसन्निधान है। बाह्य और अभ्यन्तर दोनों सन्निधानों के मिश्रण को उभयसन्निधान कहते हैं।
* प्रश्न--सम्यग्दर्शन कहाँ रहता है ?
उत्तर--प्रात्मसन्निधान की अपेक्षा सम्यग्दर्शन जीव-पात्मा में रहता है। इसी तरह सम्यगज्ञान और सम्यक्चारित्र भी जीव-आत्मा में रहते हैं। बाह्यसन्निधान की अपेक्षा सम्यग्दर्शन जीवआत्मा में, नोजीव में रहता है, इन विकल्पों को प्रागमशास्त्र में कहे अनुसार जानना चाहिए । उभयसन्निधान की अपेक्षा भी सम्यग्दर्शन के अभूत और सद्भूत रूप भंगों के विकल्प प्रागमशास्त्र के अनुसार समझने चाहिए। ....
* प्रश्न-सम्यग्दर्शन कितने काल (समय) तक रहता है ?
उत्तर-सम्यग्दृष्टि के दो प्रकार हैं। एक सादि सान्त और दूसरा सादि अनन्त । सम्यग्दर्शन (क्षायोपशमिक सम्यक्त्व) सादि सान्त ही है। उसका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त का है और उत्कृष्ट काल कुछ अधिक छयासठ सागरोपम प्रमाण का है। सम्यग्दृष्टि जीव-प्रात्मा सादि होकर अनन्त होते हैं। अतः कहा है कि तेरहवें गुणस्थानवर्ती सयोगीकेवली अरिहन्त भगवान् चौदहवें