Book Title: Tattvarthadhigam Sutraam Tasyopari Subodhika Tikat tatha Hindi Vivechanamrut Part 01 02
Author(s): Vijaysushilsuri
Publisher: Sushil Sahitya Prakashan Samiti
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११५ ] . प्रथमोऽध्यायः
[ १७ स्थापना जीवः । अथवा-यत् काष्ठपुस्तकचित्रकर्माक्षनिक्षेपादिषु स्थाप्यते द्रव्यमिति तत् स्थापनाद्रव्यं ज्ञेयम् । यथा-देवताप्रतिकृतिवदिन्द्रो रुद्रः स्कन्दो विष्णुरिति । अत्र स्थापना निक्षेपो वर्तते।
(३) द्रव्यजीव इति गुणपर्यायरहितः, बुद्धया परिकल्पितोऽनादिपारिणामिकभावसंयुक्तो जीवः स एव द्रव्यजीवः । अथवा-द्रव्यं द्रव्यनाम गुणपर्यायरहितं प्रज्ञास्थापितं धर्मादीनामन्यतमत् । अत्र केचिदप्याहुः-यद् द्रव्यतो द्रव्यं भवति तच्च पुद्गलद्रव्यमेवेति । यथा सङ्घातभेदेभ्य उत्पद्यन्ते अरणवः स्कन्धाश्चेति । तद्भङ्गः शून्यमेवप्रतिभाति । यतोऽजीवस्य यदि सजीवत्वं भवेत् तदैव द्रव्यजीव इति कथ्येत तद् भवितुन्नार्हति । अत्र हि द्रव्य निक्षेपो वर्तते ।
(४) भावतो जीवा औपशमिक-क्षायिक-क्षायौपशमिकौदयिक-पारिणामिकभावसंयुक्ता उपयोगलक्षणा एव। सोऽपि संसारिणो मुक्ताश्च द्विविधाः । एवमजीवादिषु सर्वपदार्थेषु ज्ञातव्यमिति । अत्र हि भावनिक्षेपो वर्त्तते ।
एवं निखिलानामनादीनामादिमतां च जीवाऽजीवादीनां भावानां मोक्षपर्यन्तानां तत्त्वार्थाधिगमार्थं न्यासः कार्यः, अर्थात् निक्षेपः कार्य इति ।। ५ ।।
* सूत्रार्थ-नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन चार अनुयोगों के द्वारा जीवादितत्त्वों का न्यास-निक्षेप अर्थात् लोकव्यवहार होता है ॥५॥
卐 विवेचन ॥ विश्व के सर्व व्यवहार और ज्ञान-भाव के लिए मुख्य साधन भाषा ही है। वह भाषा शब्दों से बनती है। वे शब्द प्रयोजन अथवा प्रसंग के अनुसार अनेक अर्थ वाले होते हैं। इसलिए इनके ज्यादा विभाग न कर सकें तो भी कम से कम चार विभाग अवश्य ही करने चाहिए। लक्षण और भेदों के द्वारा विश्व के पदार्थों का ज्ञान जिससे विस्तार के साथ हो सके, ऐसे व्यवहार रूप उपाय को न्यास या निक्षेप कहते हैं। इनके अवबोध से जिज्ञासुओं को तात्पर्य समझने में सरलता होती है। इसलिए प्रस्तुत सूत्र में नाम, स्थापना, द्रव्य और भाव इन चार निक्षेपों के द्वारा जीवादितत्त्वों के न्यास-निक्षेप-व्यवहार का निर्देश है। इससे यह ज्ञात होगा कि जो शब्द सम्यग्दर्शन और विश्व के जीवादितत्त्वों में व्यवहत किये जाते हैं, वे मोक्ष की और मोक्षमार्ग की सार्थकता को कैसे प्राप्त करा सकते हैं, उनका दिग्दर्शन इन नामादि चार निक्षेपों से कराते हैं
(१) नामनिक्षेप-वस्तु-पदार्थ का जो नाम होता है वह नामनिक्षेप है अर्थात् जिस शब्द की व्युत्पत्ति आदि से भी सार्थकता सिद्ध नहीं होती है, केवल लोकरूढ़ि से ही संकेतित है उसको नामनिक्षेप कहते हैं। जैसे-जीव या अजीव किसी भी द्रव्य की 'जीव' ऐसी संज्ञा रख देने से उसको नामजीव कहते हैं।