Book Title: Sramana 1990 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 12
________________ ( १० ) चार्यों ने नारी-चरित्र का जो विवरण प्रस्तुत किया है, वह मात्र पुरुषों में वैराग्य भावना जागृत करने के लिए ही है । भगवती आराधना में भी स्पष्ट रूप से यह कहा गया है-स्त्रियों में जो दोष होते हैं वे दोष नीच पुरुषों में भी होते हैं अथवा मनुष्यों में जो बल और शक्ति से युक्त होते हैं उनमें स्त्रियों से भी अधिक दोष होते हैं। जैसे अपने शील की रक्षा करने वाले पुरुषों के लिए स्त्रियाँ निन्दनीय हैं, वैसे ही अपने शील की रक्षा करने वाली स्त्रियों के लिए पुरुष निन्दनीय हैं । सब जीव मोह के उदय से कुशील से मलिन होते हैं और वह मोह का उदय स्त्री-पुरुषों में समान रूप से होता है । अतः ऊपर जो स्त्रियों के दोषों का वर्णन किया गया है वह सामान्य स्त्री की दष्टि से है। शीलवती स्त्रियों में ऊपर कहे हुए दोष कैसे हो सकते हैं ? जैनाचार्यों को दृष्टि में नारी-चरित्र का उज्ज्वल पक्ष स्त्रियों की प्रशंसा करते हुए कहा गया है जो गुणसहित स्त्रियाँ हैं, जिनका यश लोक में फैला हआ है तथा जो मनुष्य लोक में देवता समान हैं और देवों से पूजनीय हैं, उनकी जितनी प्रशंसा की जाये कम है। तीर्थकर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव और श्रेष्ठ गणधरों को जन्म देने. वाली महिलाएँ श्रेष्ठ देवों और उत्तम पुरुषों के द्वारा पूजनीय होती हैं । कितनी हो महिलाएँ एक-प्रतिव्रत और कौमार्य ब्रह्मचर्य व्रत धारण करती हैं कितनी ही जीवनपर्यंत वैधव्य का तीव्र दुःख भोगती हैं। ऐसी भी कितनी शीलवती स्त्रियाँ सुनी जाती हैं जिन्हें देवों के द्वारा सम्मान आदि प्राप्त हुआ तथा जो शील के प्रभाव से शाप देने और अनुग्रह करने में समर्थ थीं। कितनो ही शीलवती स्त्रियाँ महानदी के जल प्रवाह में भी नहीं डूब सकी और प्रज्वलित घोर आग में भी नहीं जल सकी तथा सर्प, व्याघ्र आदि भो उनका कुछ नहीं कर सके । कितनी ही स्त्रियाँ सर्वगुणों से सम्पन्न साधुओं और पुरुषों में श्रेष्ठ चरमशरीरी पुरुषों को जन्म देने वालो माताएं हुई हैं ।२ अन्तकृत्दशा और उसकी वृत्ति में कृष्ण द्वारा प्रतिदिन अपनी माताओं के पाद-वन्दन हेतु जाने का उल्लेख है। आवश्यकचूर्णि और कल्पसूत्र टीका में उल्लेख है कि महावीर ने अपनी १. भगवती आराधना गाथा ९८७-८८ व ९९५-९६ २. वही गाथा, ९८९-९४ ३. तए णं से कण्हे द्रासुदेव पहाए जाव विभूसिए देवईए देवीए पायवंदाये हम्बमागच्छद। -अन्तकृद्दशा सूत्र १८ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org For

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