Book Title: Sramana 1990 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 114
________________ ( ११२ ) था। दूसरा बड़ा मार्ग भारभुक्ति (भरहुत) होता हुआ कौशांबी (कोसम) जाता था। वहाँ से काशी, पाटलिपुत्र (पटना) होते हुए यह राजपथ राजगह (राजगिरि) पहुँचता था। इस मार्ग पर राजगढ़ और शाजापुर जिलों के क्षेत्र थे। बौद्ध साहित्य से पता चलता है कि प्रतिष्ठान से राजगह जाने वाले इसी मार्ग द्वारा बौद्ध पर्यटक बावरी अपने बहुसंख्यक शिष्यों के साथ गौतम बुद्ध से मिलने के लिए राजगृह गये थे। ई०पू० ५०० के लगभग पाणिनि ने अपने ग्रंथ "अष्टाध्यायी" की रचना की । इस ग्रंथ में व्यापारिक मार्गों एवं यात्राओं के सन्दर्भ मिलते हैं । उत्तरापथ-मार्ग का उल्लेख पाणिनि ने किया है। यह बड़ा व्यापारिक-मार्ग उत्तरी भारत से चलकर उत्तर-पश्चिम में कैस्पियन सागर तट से होता हुआ आगे को जाता था। इसका वर्णन स्ट्राबो तथा प्लिनी नामक यूनानी ऐतिहासिकों ने भी किया है। भारत में यह मार्ग पुरुषपुर (पेशावर) से पूर्व में पाटलिपुत्र (पटना) तक जाता था। इस पर बाह लीक, कपिशा, पुष्कलावती, मशकावती, उद्भांडपुर, तक्षशिला, शाकल, हस्तिनापुर, मथुरा, कनौज, प्रयाग पाटलिपुत्र तथा ताम्रलिप्ति नगर बसे हुए थे। ___ कात्यायन ने अपने व्याकरण-भाष्य में "कांतारपथ", "जंगलपथ", "स्थलपथ" और "वारिपथ" नामक व्यापारिक मार्गों की चर्चा की है। ये मार्ग क्रमशः घने जंगलों, साधारण वनों, मैदानों तथा नदी-समुद्र आदि जलाशयों से होकर गुजरते थे। पाणिनि द्वारा प्रयुक्त "पंचनौः", "दशनौः" आदि शब्दों से प्रकट है कि व्यापारी जल-मार्ग द्वारा अपनी नौकाएँ ले जाते थे। "पंचनौः" से अभिप्राय माल से लदी हुई पाँच नौकाओं से तथा "दशनौः" से तात्पर्य ऐसी दस नावों से है। बौद्ध ग्रंथ "महानिद्देस' की टीका तथा अन्य ग्रंथों में विविध प्रकार के व्यापारिक मार्गों के उल्लेख मिलते हैं । __झालावाड़, मंदसौर, रतलाम तथा राजगढ़ जिलों की सीमाएं शाजापुर जिले से मिलती हैं। इनमें भारतीय संस्कृति के विकास की दृष्टि से झालावाड़ और राजगढ़ क्षेत्र विशेष उल्लेखनीय हैं। राजगढ़ से कुछ समय पूर्व कुषाण सम्राट कनिष्क प्रथम की एक दुर्लभ स्वर्ण Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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