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( ११३ ) मुद्रा मिली थी। उस पर एक ओर उपाधियों सहित कनिष्क का नाम अंकित है। वह बाएँ हाथ में शिव का प्रतीक त्रिशूल धारण किये है; दाएँ हाथ से वेदी में हवन कर रहा है। सिक्के के पृष्ठ भाग पर भगवान् बुद्ध अभयमुद्रा में खड़े हैं और उनका नाम प्राचीन यूनानी लिपि में 'बोड्डो' अंकित है। राजगढ़ जिला के नरसिंहगढ़ नामक स्थान पर मौखरि-वंश का एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण ब्राह्मी लेख अंकित है, जिसका समय लगभग ५०० ई० है। लेख के अनुसार उस स्थल पर मौर्य सम्राट अशोक ने बौद्ध-स्तप तथा मठ का निर्माण कराया था। लेख के अनुसार ये इमारतें क्षतिग्रस्त हो गयीं। उनके पुनर्निर्माण तथा वहाँ के निवासी बौद्ध भिक्षुओं को सुविधाएँ प्रदान करने के लिए मौखरि राजा ने आदेश निकाला। यहाँ यह स्मरणीय है कि मौखरि शासक वैदिक धर्मावलंबी थे। पर उन्होंने बौद्ध धर्म के प्रति आदर भाव व्यक्त करते हुए उक्त आदेश प्रसारित किया था।
हाल में शाजापुर से लगभग १६ किलोमीटर दूर स्थित सेतखेड़ी नामक स्थान में एक बावड़ी (वापी) की सफाई करते समय एक दुर्लभ ब्राह्मी शिलालेख मिला है। शाजापुर की पुरातत्त्व-प्रेमी जिलाध्यक्षा श्रीमती अरुणा शर्मा ने इस शिलालेख को शाजापूर नगर में स्थापित संग्रहालय के लिए प्राप्त कर लिया है।।
यह शिलालेख पश्चिमी भारत के क्षत्रप शासक रुद्रसिंह का है। इस पर शक संवत् १०७ (१८५ ई०) अंकित है। एक विशेष बात यह है कि लेख में रुद्रसिंह के तीन पूर्वजों --क्रमशः चष्टन, रुद्रदामा तथा जयदामा के नाम लिखे हैं। पहली बार इतना प्राचीन क्षत्रप शिलालेख मध्य प्रदेश में मिला है। इसका गौरव निस्संदेह शाजापुर जनपद को प्राप्त हआ है। एरण तथा सांची से क्षत्रपों के लेख, सिक्के, साँचे तथा अन्य अवशेष मिले हैं। सेतखेड़ी की यह नई उपलब्धि उनके इतिहास पर नया प्रकाश डालती है। ज्ञात हुआ है कि कुछ समय पूर्व सेतखेड़ी से कुछ सोने के सिक्के मिले थे, जो गला दिये गये ।
प्राचीन शाजापुर क्षेत्र में समीपवर्ती भूभागों की तरह विभिन्न धर्म साथ-साथ संबधित हो रहे थे। वैदिक-पौराणिक, बौद्ध, जैन तथा लोकधर्म यहाँ सहिष्णुता के वातावरण में शताब्दियों तक विकसित
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