Book Title: Sramana 1990 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 78
________________ ( ७६ ) समस्त अनंत दर्शन आदि से युक्त हैं ।" अगर हम तीर्थंकर के जीवन की ओर दृष्टिपात करें तो नैतिक गुणों के भी वहाँ दर्शन होते हैं । " विकारों पर विजय प्राप्त करने वाले रागद्वेषादि से विरत तीर्थंकर शुभत्व की प्रतिमूर्ति हैं । उनमें अच्छाई ही है, बुराई का लेशमात्र नहीं । मनुष्य जिन अच्छे गुणों की कल्पना कर सकता है वे सब तीर्थङ्कर में विद्यमान हैं । दयालुता के गुण पर प्रकाश डालते हुए आचारांग सूत्र में कहा गया है : सव्वे सत्ता ण हंतव्वा एस धम्मे सुद्धे णिइए सासए समिच्च लोयं खेयण्णेहिं पवेइए । अर्थात् भूतकाल में जो अर्हत् हुए हैं, वर्तमान काल में जो अर्हत् हैं और भविष्य में जो अर्हत होंगे, वे सभी एक ही सन्देश देते हैं कि किसी प्राणी की, किसी सत्त्व की हिंसा नहीं करनी चाहिए, उनका घात नहीं करना चाहिये, उसे पीड़ा नहीं पहुँचानी चाहिये, यही एकमात्र शुद्ध, नित्य एवं शाश्वत धर्म है । इसी सन्दर्भ में प्रश्नव्याकरण सूत्र में कहा गया है कि भगवान् ( तीर्थंकर ) का यह सुकथित प्रवचन संसार के सभी प्राणियों के रक्षण एवं करुणा के लिए है । * तीर्थंकर को उदासीन संत और लोक कल्याणकारी माना गया है । लोककल्याण की भावना जैन धर्म का प्राण है । इन तीर्थंकरों को आध्यात्मिक गुरु और प्रेरणास्रोत के रूप में प्रतिष्ठित किया गया है।" हेमचन्द्र ने योगशास्त्र में इस पर स्पष्ट तौर पर प्रकाश डाला है । वहाँ कहा गया है कि गुरु हमें सत्य के प्रकाशन एव १. तत्त्वार्थसूत्र ७।२ २. द्रष्टव्य – कल्पसूत्र १६ तथा तत्त्वार्थं सूत्र ६।२३ ३. स्टडीज इन जैनिज्म, पृ० २६८ ४. उद्धृत — धर्म का मर्म पृ० १७ ५. प्रश्नव्याकरणसूत्र २।१।२ ६. नियमसार ७७-८१ तथा उत्तराध्ययन सूत्र ३२ । १०१ ७. कल्पसूत्र १६ ८. ज्ञानार्णव ( शुभचन्द्र ) ३७|४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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