________________
( १०९ ) में भी यही उल्लेख मिलता है परन्तु जैसलमेर की सूची में इस व्याख्या ग्रन्थ के कर्ता मलधारिगच्छीय देवभद्रसूरि उल्लिखित हैं। ७. कौतुक कथा :
यह नैतिक कहानियों का संग्रह है। इसे विनोदकथा संग्रह व अन्तरकथा संग्रह भी कहते हैं । इसमें ८१ कथायें हैं । २ बृहटिप्पणिका के अनुसार इसमें ८४ कथायें हैं । श्वेताम्बर संस्था, रतलाम (१९३७ ई०) से प्रकाशित आचार्य राजशेखरसूरि कृत एक 'कथाकोश' भी उपलब्ध है। इसमें ८६ कहानियाँ संग्रहीत हैं। यह सम्भवतः अन्तरकथा संग्रह का ही अन्य नाम है । ८. दाननिशिका
३६ श्लोक में निबद्ध इस वृत्ति में दाता की प्रशंसा, दाता के गुण, लक्ष्मी का माहात्म्य, व सर्वमनोरथ प्राप्ति के उपकरण के रूप में दान वणित है। जिनरत्नकोश तथा जैनग्रन्थ और ग्रन्थकार में आचार्य राजशेखर की कृतियों के अन्तर्गत इसका उल्लेख नहीं है।
दानषट्त्रिंशिका चूणि सहित, श्वेताम्बर संस्था, रतलाम ( सन् १९२७ ई० ) से यशोदेव सूरि कृत प्रत्याख्यान स्वरूप आदि अन्य चार कृतियों के साथ प्रकाशित हैं । ६. सूरिमन्त्र नित्यकर्म
यह दस वक्तव्यों में विभाजित है। प्रथम वक्तव्य में आराधना की सत्रह मुद्रायें, द्वितीय वक्तव्य में मतिज्ञान, तृतीय वक्तव्य में श्रुतज्ञान,. चतुर्थ वक्तव्य में अवधिज्ञान, पञ्चम वक्तव्य में मनःपर्यवज्ञान और षष्ठ वक्तव्य में केवल ज्ञान से सम्बन्धित मन्त्र वर्णित हैं। सातवें वक्तव्य में सम्पूर्ण सूरि मन्त्र, आठवें वक्तव्य में विस्तार पूर्वक देवताओं की स्तुति विधि, नौवें वक्तव्य में देवताओं की संक्षिप्त स्तुति विधि तथा अन्तिम वक्तव्य 'महिमा' शीर्षक से उपलब्ध है। ४. जैसलमेर कलेक्शन, सं० मालवणिया, पं० दलसुख, पृ० १६१, एल• डी०. __इंस्टीच्यूट ऑव इण्डोलॉजी, अहमदाबाद-९, १९७२ १. जिनरत्नकोश, डॉ० वेलणकर खण्ड १, पृ० ११ व ९६ २. जैन ग्रन्थावलि, पृ० २१४ टिप्पणी
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org