Book Title: Sramana 1990 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 92
________________ दिखलाकर तत्सम्बन्धी गुण-दोषों का बखान करती थीं । इसके अतिरिक्त उस काल में रूप एवं सौन्दर्य-सम्पन्न दासियों (तरुणी दासी) की उपस्थिति स्वामी पुत्रों के अति निकट रहती थी। दासों का जीवन-भगवान् महावीर के अहिंसा महाव्रत के समर्थक एवं बहुसंख्यक सहृदय दासपति, दासों को अपने पारिवारिक सदस्यों के साथ नियुक्त कर उनका सम्यक् पालन-पोषण कर उदारता का प्रदर्शन करते थे तथा उन्हें 'देवानुप्रिय' जैसे शब्दों से सम्बोधित भी करते थे। उपासकदशांगसूत्र में अहिंसावत के अतिचारों के अन्तर्गत दासों को बाँधने, जान से मारने, बहुत अधिक बोझ लादने तथा अत्यधिक श्रम लेने जैसे अनाचारों को भी सम्मिलित किया गया है। लेकिन कभी-कभी दासों द्वारा विवेकहीन कर्मों का निष्पादन करने पर स्वामी द्वारा उन्हें प्रताड़ित भी किया जाता था । कतिपय क्रूर दासपतियों द्वारा दासों को अकारण ही प्रताड़ित किया जाता था तथा उनको सामर्थ्य से परे कार्यों में लगाकर पीड़ा पहुँचाई जाती थी। जनसामान्य अपनी आवश्यकतानुसार परिवार में दासों की नियुक्ति करते थे तथा उनके भरण-पोषण का ध्यान भी रखते थे। इन सबके बावजूद दासों की गणना भोग्य वस्तुओं में करके उनकी स्वतंत्रता को बाधित कर दिया जाता था। जैनागमों के काल में दास-दासियों का क्रयविक्रय, उपहार एवं पारिश्रमिक के रूप में दिया जाना तथा उन्हें प्रता. ड़ित करना एवं जीवनपर्यन्त पराधीनता आदि तथ्य उनकी शोचनीय सामाजिक-आर्थिक स्थिति की ओर बरबस ध्यान आकृष्ट कराते हैं। दासता से मुक्ति-जैन ग्रन्थों में कुछ ऐसे भी सन्दर्भ प्राप्त होते हैं, जहाँ दासों द्वारा दिये गये शुभसन्देश से खुश होकर दासपति उन्हें १. ज्ञाताधर्मकथासत्र १।१।१४७-४८ तथा देखिए बुद्धकालीन समाज और धर्म पृ० ३१-३२ ( बिहार हिन्दी ग्रन्थ अकादमी, पटना ) २. उपासकदशा सूत्र अ० १, सू० ४५ ३. ज्ञाताधर्मकथा सूत्र १।१८१८ ४. आवश्यकचूणि पृ० ३३२; जैनागम में भारतीय समाज; पृ० १६१ ५. अन्तकृद्दशा सूत्र ३।२-६ ६. वही ८।१५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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