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राजशेखर को गुरु-परम्परा
स्वयं राजशेखर भूरि ने प्रबन्धकोश की प्रशस्ति में कहा है कि वे प्रसिद्ध कोटिक गण की मध्यमाशाखा के प्रश्नवाहन कुल में हर्षपुरीय नामक गच्छ में उत्पन्न हुए थे । इसी गच्छ में मलधारि विरुद प्राप्त श्री अभयदेवसूरि के सन्तान श्री श्रीतिलकसूरि के शिष्य राजशेखर हुए । '
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पट्टावली समुच्चय में कोटिक गण की उत्पत्ति का उल्लेख मिलता है । इसकी उत्पत्ति प्रथम पट्टधर सुधर्मा स्वामी की परम्परा में ९वें पट्टधर सुस्थितसूरि से बताई गई है । एक करोड़ सूरि मन्त्र के जाप के कारण इन्हें कोटिक और काकन्दि में जन्म होने के कारण काकन्दिक विरुद प्राप्त हुआ था । इसी पुस्तक में अन्यत्र उल्लेख है कि सुस्थितसूरि के पूर्व सभी जैन श्रमण निर्ग्रन्थ नाम से जाने जाते थे । आचार्य के अनुयायी कोटिक कहे जाने लगे । कोटिकगण की चार शाखाओं में से एक मध्यमा शाखा थी । इसके चार कुल भी थे, जिनमें चौथा कुल प्रश्नवाहन कुल था । * प्रश्नवाहन कुल से कालान्तर में हर्षपुरीय गच्छ उत्पन्न हुआ ।
उपर्युक्त विवरण के अनुसार सुस्थितसूरि से कोटिक गण की उत्पत्ति हुई परन्तु राजशेखर ने हर्षपुरीय गच्छ को स्थूलभद्र के वंश १. श्री प्रश्नवाहनकुले कोटिकनामनिगणे जगद्विदिते ।
श्री मध्यमशाखायां हर्षपुरीयाभिधगच्छे ॥ १ ॥ मलधारि विरुदविदित श्री अभयोपपदसूरिसन्ताने श्री तिलकसूरिशिष्यः सूरि : राजशेखरो जयति ॥ २ ॥
प्रबन्धकोश - प्रशस्ति
२. मुनि दर्शनविजय, पट्टावली समुच्चय भाग १, पृ० २५-२६, चारित्रस्मारक ग्रन्थमाला वीरमग्राम, गुजरात, १९३३ ॥
३. काकन्दिनगर्या जातत्वात् कोटिशः सूरिमन्त्र जापाच्च एतो कोटिककाकंदिकतयाख्यातौ । आभ्यां कोटिकनामा गच्छोऽभूत् ॥ वही, पृ० १५० । श्री सुधर्मस्वामिनोऽष्टौसूरीन् यावत् निर्ग्रन्थाः साधवोऽनगारा इत्यादि सामान्यार्थाभिधायिन्याख्याऽसात् । वही, पृ० ४५ ।
५. कल्पसूत्र - पृ० २३२, प्राकृत भारती अकादमी, जयपुर १९७७ ई० । ६. श्री स्थूलभद्रवंशे हर्षपुरीये क्रियानिधौ गच्छे ।
- प्रशस्ति रत्नाकरावतारिका पंजिका ।
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