Book Title: Sramana 1990 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 108
________________ ( १०६ ) अन्त समय जिस प्रकार राजशेखर के जन्म काल का उल्लेख नहीं मिलता है । उसी प्रकार उनके देहावसान का काल भी अज्ञात है । उनका दीक्षा - काल संवत् १३१३ उल्लिखित है और संवत् १४१० ( ई० सन् १३५२-५३ ) में शान्तिनाथचरित का संशोधन करने और संवत् १४१८ ( १३६१ ई० ) में पार्श्वनाथ की प्रतिमा की प्रतिष्ठा करवाने का विवरण मिलता है । यदि इन साक्ष्यों को प्रमाण मानें तो इतना निश्चित है कि राजशेखर की आयु सौ से ऊपर रही होगी । संवत् १४१८ के आस-पास ही इनकी मृत्यु हुई होगी । इस प्रकार तेरहवीं शताब्दी के मध्य में जन्में राजशेखर श्रमण धर्म में दीक्षा लेकर मुनि से आचार्य पर्यन्त पद प्राप्त किये । मुहम्मद तुगलक के दरबार में प्रतिष्ठित हुए एवं विभिन्न ग्रन्थों की रचना कर चौदहवीं शताब्दी के मध्य में महाप्रयाण किये । राजशेखर की कृतियाँ प्रबन्धकोश : राजशेखर की कृतियों में सर्वाधिक प्रसिद्ध प्रबन्धकोश है । इसके चतुर्विंशतिप्रबन्ध और प्रबन्धामृतदीर्घिका नाम भी मिलते हैं । सामान्यतः प्रबन्धकोश और चतुर्विंशति प्रबन्ध ही अधिक प्रचलित हैं । इसकी रचना आचार्य ने वि० सं० १४०५ ( १३४८ ई० ) में दिल्ली में महण सिंह द्वारा प्रदत्त आवास में किया था । इसमें कुल चौबीस प्रबन्ध हैं, जो दस प्रभावक आचार्यों, चार कवियों, सात नरेशों और तीन श्रावकों के आख्यान पर आधारित हैं । ये आचार्य हैं- भद्रबाहु, आर्यनन्दिल, जीवदेवसूरि, आर्यखपुट, पादलिप्त, वृद्धवादिसिद्धसेन, मल्लवादि, हरिभद्र, बप्पभट्टि और हेमचन्द्रसूरि, चार कवि हैं - हर्ष, हरिहर, अमरचन्द्र, और मदनकीर्ति । सात नरेशों में -- सातवाहन, वङ्कचूल, विक्रमादित्य, नागार्जुन, वत्सराजउदयन, लक्ष्मणसेनकुमारदेव और मदनवर्म सम्मिलित हैं । अन्त में तीन जैनश्रावकों-रत्न, आभड और वस्तुपाल - तेजपाल का विवरण प्राप्तः होता है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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