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( १०४ ) खरतरगच्छबृहद्गुर्वावलि के ही अनुसार संवत् १३६४ ( १३०७ ई० ) में जावालिपुर में राजशेखर को आचार्य पद प्रदान किया गया।'
डा० प्रवेश भारद्वाज ने मलधारि राजशेखर आचार्य को सूरि पद दिये जाने का समय भी अनुमान के आधार पर ( १३१० ई०-१३२८ ई० ) निश्चित किया है। परन्तु आचार्य पद और सूरि पद भिन्नभिन्न थे या आचार्य पद से सूरिपद श्रेष्ठ था ऐसा प्रतीत नहीं होता है। वस्तुतः व्यवहार में भी आचार्य और सूरि उपाधियाँ एक ही हैं । आचार्य को ही सूरि कहा जाता है। अतः इस प्रकार की अवधारणा कि आचार्य पद प्राप्त करने के पश्चात् किसी समय मलधारि राजशेखर को सूरिपद प्रदान किया गया, उचित नहीं है।
विहार और चातुर्मास___ खरतरगच्छबृहद्गुर्वावलि से ज्ञात होता है कि संवत् १३५२ में जिनचन्द्रसूरि के उपदेश से वाचनाचार्य राजशेखर गणि, सुबुद्धिराजगणि, हेमतिलकगणि, पुण्यकीर्तिगणि, रत्नसुन्दरमुनि सहित बृहद्ग्राम आये। तदुपरान्त ठक्कुर रत्नपाल आदि श्रावकों ने कौशाम्बी, वाराणसी, काकिन्दी, राजगृह, पावापुरी, नारिन्दा, क्षत्रियकुण्डग्राम, अयोध्या, रत्नपुर आदि नगरों की तीर्थयात्रा की। उन मुनियों
और श्रावकों के साथ संघ सहित वाचनाचार्य राजशेखरगणि ने उन तीर्थों की वन्दना की।४ राजगह के समीप उद्दण्ड विहार में चातुमसि किया।
१. वाचनाचार्य राजशेखरगणे राचार्यपदं प्रदत्तम् । --खरतरगच्छबृहद्गुर्वावलि,
पृ० ६१ २. डॉ० भारद्वाज, प्रवेश, प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन, पृ० ३४ ३. सं० १३५२ जिनचन्द्रसूरिगुरूपदेशेन वा० राजशेखरगणि: ... ... ... ... ... ... ... 'मुनिसहितः श्रीवृहद्ग्रामे विहृतवान् ।
खरतरगच्छ बृहद्गुर्वावलि, पृ० ६० ४. वही, पृ० ६० ५. प्रबन्धकोश का ऐतिहासिक विवेचन, पृ० ३०
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