Book Title: Sramana 1990 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

View full book text
Previous | Next

Page 51
________________ क्षेत्रज्ञ शब्दके विविध प्राकृत रूपोंकी कथा और उसका अर्धमागधी रूपान्तर ____-डॉ० के० आर० चन्द्र आचारांग' के प्रथम श्रुतस्कंध में 'क्षेत्रज्ञ' शब्द के प्राकृत रूपों का १६ बार प्रयोग हुआ है [ सूत्र सं० ३२ (४) ७९ (१); ८८ (१); १०४ (१); १०९ (५); १३२ (१); १७६ (१); २०९ (१); २१० (१)] जो विविध संस्करणों में इस प्रकार उपलब्ध हो रहे हैं :अ. (१) शुब्रिग महोदय के संस्करण में मात्र खेयन्न । (२) आगमोदय समिति के संस्करण में खेयन्न ९ बार और खेयण्ण ७ बार। ३) जैन विश्व भारती के संस्करण में खेयन्न १ बार और खेयण्ण १५ बार। (४) महावीर जैन विद्यालय के संस्करण में खेयग्ण २ बार, खेतण्ण ६ बार और खेत्तष्ण ८ बार। ब. पाठान्तर(१) शुब्रिग महोदय के संस्करण में सिर्फ एक ही पाठान्तर है खेत्तन्न ( चूणि से ३ बार और 'जी' संज्ञक प्रत से ५ बार )। आगमोदय समिति के संस्करण में कोई पाठान्तर नहीं है। (३) जैन विश्व भारती के संस्करण में दो पाठान्तर मिलते हैं खेत्तन्न ( 'च' संज्ञक प्रत से ) और खेत्तण्ण ( चूर्णि से )। महावीर जैन विद्यालय के संस्करण में पाठान्तरों की संख्या ५ है--१. खित्तण्ण, २. खेदन, ३. खेदण्ण, ४. खेयन्न और ५. खेअन्न। १. महावीर जैन विद्यालय, संस्करण, सं० मुनि जंबूविजय, ई० सन् १९७७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106 107 108 109 110 111 112 113 114 115 116 117 118 119 120 121 122