Book Title: Sramana 1990 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 50
________________ ( ४८ ) बनाता है। वहाँ न केवल पुरुष को बहुविवाह का अधिकार है अपितु उसे यह भी अधिकार है कि वह चाहे जब मात्र तीन बार तलाक कहकर विवाह बन्धन को तोड़ सकता है। फलतः उसमें नारी को अत्याचार व उत्पीड़न की शिकार बनाने की सम्भावनाएँ अधिक रही है । यह केवल हिन्दूधर्म व जैनधर्म की ही विशेषता है कि उसमें विवाह के बन्धन को आजीवन एक पवित्र बन्धन के रूप में स्वीकार किया जाता है और यह माना जाता है कि यह बन्धन तोड़ा नहीं जा सकता है। यद्यपि इस्लाम में नारी के सम्पत्ति के अधिकार को मान्य किया गया है, किन्तु व्यवहार में कभी भी नारी पुरुष की कैद एवं उत्पीड़न से मक्त नहीं रह सकी। उसमें स्त्री पुरुष की वासनापूति का साधन मात्र ही बनी रही। भारत में पर्दाप्रथा, सतीप्रथा जैसे कुप्रथाओं के पनपने के लिए इस्लामधर्म ही अधिक जिम्मेदार रहा है। इस तुलनात्मक विवरण के आधार पर अन्त में हम यह कह सकते हैं कि विभिन्न धर्मों की अपेक्षा जैनधर्म का दृष्टिकोण नारी के प्रति अपेक्षाकृत अधिक व्यावहारिक एवं उदार है। यद्यपि इस सत्य को स्वीकार करने में हमें कोई आपत्ति नहीं है कि समसामयिक परिस्थितियों और सहवर्ती परम्पराओं के प्रभाव से जैनधर्म में भी नारी के मूल्य व महत्त्व का क्रमिक अवमूल्यन हुआ है। किन्तु उसमें उपस्थित भिक्षणी संघ ने न केवल नारी को जो गरिमा प्रदान की, अपितु उसे सामाजिक उत्पीड़न और पुरुष के अत्याचारों को बचाया भी है। यही जैनधर्म की विशेषता है। माघ शुक्ल पूर्णिमा सागरमल जैन वि० संवत् २०४८ निदेशक पार्श्वनाथ विद्याश्रम शोध संस्थान, वाराणसी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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