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लेकर है। प्राचीन समय में लकड़ी का उपयोग प्रमुखतः ईंधन के लिए किया जाता था। आधुनिक काल में गैस एवं कोयले का प्रचुर उपयोग हो रहा है। वैसे भी हमें लकड़ियों ( वनस्पतियों) का निरर्थक उपयोग नहीं करना चाहिए। शुद्ध खाद्य-पदार्थ के उपभोग का जो निर्देश दिया गया है वह मुख्यतः हमारे स्वास्थ्य से सम्बन्धित है। खाद्यपदार्थों में मिलावट से हमारे शरीर में अनेक रोग हो जाते हैं। इनसे बचने का सर्वोत्तम उपाय शुद्ध खान-पान ही है।
इस प्रकार आचार्य हरिभद्र ने अहिंसा के सम्बन्ध में श्रावकों को जो निर्देश-उपदेश दिया है, आधुनिक समाज में भी उनकी सार्थकता है। मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। यदि उसे समाज में रहना है तो उसे समाज के सभी व्यक्तियों के सुख-सुविधाओं का ध्यान रखना पड़ेगा। अहिंसा समानता का पाठ पढ़ाती है। जहाँ तक सिंह आदि हिंस्र एवं सर्प आदि विषैले जन्तुओं का प्रश्न है, आधुनिक सरकार इनके संरक्षण-परिरक्षण का हर सम्भव प्रयास कर रही है । अनेक आरण्य-अभयारण्य घोषित कर दिये गये हैं जहाँ पशुओं की हत्या या शिकार निषिद्ध है। हम समाज में "जियो और जीने दो" के सिद्धान्त का पालन कर अहिंसा की मूल भावना के निकट पहुँच सकते हैं।
प्रवक्ता, प्राचीन इतिहास श्री बजरंग महाविद्यालय दादर आश्रम सिकन्दरपुर, बलिया, उ० प्र०
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