Book Title: Sramana 1990 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 52
________________ ( ५० ) इस संस्करण में 'खेत्तन्न' पाठान्तर का कहीं पर भी उल्लेख नहीं होना एक आश्चर्य की बात है, जबकि शुबिंग महोदय को ताडपत्र की एक प्रत में और चूर्णि में खेत्तन्न पाठ मिला है। स. क्षेत्रज्ञ शब्द के लिए प्राकृत में ( ध्वनि-परिवर्तन वाले ) जो अलग अलग शब्द अपनाये गये हैं वे इस प्रकार हैं(१) खेयन्न, खेयण्ण, खेतण्ण, खेत्तण्ण इन चारों पाठों को विभिन्न संपादकों ने समान रूप से नहीं अपनाया है। उपरोक्त संस्करणों के पाठान्तरों में जो रूप मिलते हैं वे इस प्रकार हैं-खेत्तन्न और ऊपर ब (४) में दिये गये पाँच रूप खित्तण्ण, खेदन्न, खेदण्ण, खेयन्न और खेअन्न । (३) अर्थात् कुल नौ रूप मिलते हैं जो निम्न प्रकार से चार भागों में रखे जा सकते हैं :[अ] खेयन्न, खेअन्न (न) [ब ] खेतण्ण, खेयण्ण (ण्ण) [ स ] खेत्तन्न, खेत्तण्ण, खित्तण्ण (त्त) [द ] खेदन्न, खेदण्ण (द) [ एक अन्य रूप से त=द = अ य ] इ. (१) क्षेत्रज्ञ शब्द संस्कृत साहित्य में मिलता है और उसके अर्थ इस प्रकार दिये गये हैंक्षेत्र का जानकार, खेती का जानकार, निपुण, कुशल, आत्मज्ञ स्व-चैतन्यज्ञ। (२) पाइयसद्दमहण्णवो में खेयन्न और खेअण्ण का संस्कृत रूप १. (अ) Sanskrit Dictionary by Monier Williams :-Knowing localities, familiar with the cultivation of soil, clever skilful, dexterous, cunning, knowing the body i.e. the soul, the conscious principle, etc. (ब) क्षेत्रज्ञ = आत्मा (क्षेत्रज्ञ आत्मा पुरुषः) अमरकोष :-१।४।२९, ३।३।३३। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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