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( ५१ ) खेदज्ञ दिया गया है और उसके ये अर्थ दिये गये हैं
चतुर, जानकार, निपुण, कुशल । अन्य प्राकृत रूप जो ऊपर दर्शाये गये हैं उनका उल्लेख इस कोष में नहीं है। आगम शब्द-कोष (अंगसुत्ताणि, जैन विश्व भारती संस्करण) में खेत्तण्ण और खेयण्ण दोनों शब्द संस्कृत रूपान्तर क्षेत्रज्ञ
के साथ दिये गये हैं।* (क) इस शब्द के विषय में चूर्णिकार कहते हैं-खित्तं जाणति
त्ति खित्तण्णो । खित्तं आगासं, खित्तं जाणतीति, खित्तण्णो, तं आहारभूतं दव्वकालभावाणं अमुत्तं च पच्चति । मुत्तामुत्ताणि खित्तं च जाणतो पाएण दव्वादीणि जाणइ । जो वा संसारियाणि दुक्खाणि जाणति सो खित्तण्णो पंडितो
वा। (ख) जबकि आचारांग के टीकाकार अधिकतर खेदज्ञ' से ही अर्थ
समझाते हैं-निपुण के साथ अभ्यास, श्रम आदि अर्थ भी दिये गये हैं (आगमो. पृ० १२४ )। कभी-कभी क्षेत्रज्ञ का अर्थ निपुणता भी समझाते हैं । शीलांकाचार्य (सू० १३२ पर टीका) खेदज्ञ का अर्थ इस प्रकार करते हैं-जन्तु दुःखपरिच्छेत्तभिः । वास्तव में मल शब्द तो 'क्षेत्रज्ञ' ही था लेकिन बाद में बदलकर 'खेदज्ञ' भी बन गया। वैसे प्राकृत शब्द 'खेदण्ण' और 'खेदन' कागज की प्रतों में ही अधिकतर
मिलते हैं।' (ग) महावीर जैन विद्यालय के संस्करण में क्षेत्रज्ञ शब्द के लिए
जो प्राकृत रूप (पाठ) स्वीकृत किया गया है और विभिन्न प्रतों ( ताडपत्र और कागज ) से उसके जो पाठान्तर दिये गये हैं वे इस प्रकार हैं
• प्रारम्भ के विभाग अ (३) में 'खेत्तण्ण' शब्द पाठान्तर में रखा गया है । १, महावीर जैन विद्यालय पृ० २६ टिप्पण ८; पृ० ३९, टि० १० २. वही, पृ० २६, टि० ८; पृ० ३९ टि० १० ( हे० १, २, ३ और ला०
संज्ञक प्रतियाँ )।
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