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( ५६ ) 'खेत्तन्न' शब्द-रूप ही उपयुक्त माना जाना चाहिए और उसी शब्द का प्रयोग आचारांग में सर्वत्र किया जाना चाहिए। भाषा विज्ञान के अनुसार और ऐतिहासिक विकास की दृष्टि से यही निर्णय उपयुक्त ठहरता है।
प्राकृत जैन विद्या विकास फण्ड ३७५ सरस्वती नगर
अहमदाबाद
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