Book Title: Sramana 1990 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 15
________________ ( १३ ) को इस सम्बन्ध में संकोच रहा - यह भी इसी तथ्य का द्योतक है कि जैनसंघ का दृष्टिकोण नारी के प्रति अपेक्षाकृत उदार रहा है । जैनसंघ में नारी का कितना महत्त्वपूर्ण स्थान था इसका सबसे बड़ा प्रमाण तो यही है कि उसमें प्रागैतिहासिक काल से वर्तमान काल तक सदैव ही भिक्षुओं की अपेक्षा भिक्षुणियों की और गृहस्थ उपासकों की अपेक्षा उपासिकाओं की संख्या अधिक रही है। समवायांग, जम्बूद्वीप-प्रज्ञप्ति, कल्पसूत्र एवं आवश्यक निर्युक्ति आदि में प्रत्येक तीर्थंकर की भिक्षुणियों एवं गृहस्थ उपासिकाओं की संख्या उपलब्ध होती है । इन संख्यासूचक आंकड़ों में ऐतिहासिक सत्यता कितनी है, यह एक अलग प्रश्न है, किन्तु इससे तो फलित होता ही है कि जैनाचार्यों की दृष्टि में नारी जैनधर्मं संघ का महत्त्वपूर्ण घटक थी । भिक्षुणियों की संख्या सम्बन्धी ऐतिहासिक सत्यता को भी पूरी तरह नकारा नहीं जा सकता। आज भी जैनसंघ में लगभग नौ हजार दो सौ भिक्षु भिक्षुणियों में दो हजार तीन सौ भिक्षु और छह हजार नौ सौ भिक्षुणियाँ हैं । भिक्षुणियों का यह अनुपात उस अनुपात से अधिक ही है जो पार्श्व और महावीर के युग में माना गया है । धर्मसाधना के क्षेत्र में स्त्री और पुरुष को समकक्षता के प्रश्न पर ऐतिहासिक दृष्टि से विचार करें तो अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्य हमारे समक्ष उपस्थित होते हैं । सर्वप्रथम उत्तराध्ययन, ज्ञाताधर्मकथा, अन्तकृत् दशा आदि आगमों में स्पष्ट रूप से स्त्री और पुरुष दोनों को ही साधना के सर्वोच्च लक्ष्य मुक्ति प्राप्ति के लिए सक्षम माना गया है। उत्तराध्ययन में स्त्रीलिंग सिद्ध का उल्लेख है । ज्ञाता, अन्तकृत् दशा" एवं आवश्यक १. कल्पसूत्र, क्रमशः १९७, १६७, १५७ व १३४, प्राकृत भारती, जयपुर, १९७७ ई० २. चातुर्मास सूची, पृ० ७७ प्र. अ. भा. समग्र जैन चातुर्मास सूची प्रकाशन परिषद् बम्बई १९८७ ३. इत्थी पुरिससिद्धा य, तहेव य नपुंसगा । सलिंगे अन्नलिंगे य, गिहिलिंगे तहेव य ॥ ४. ज्ञाताघर्मकथा -- मल्लि और द्रौपदी अयययन ५. ( अ ) तथेव हत्थिखंधव रगताए केवलनाणं, सिद्धाए इमामे ओसप्पिणीए पद्मसिद्धो मरुदेवा | एवं आराहणं प्रतियोगसंगहो कायव्वो ।-आ० चूर्णि - उत्तराध्ययन सूत्र ३६, | Jain Education International -p भाग २, पृ० २१२ द्रष्टव्य, वही भाग, १, पृ० १८१ व ४८८ । For Private & Personal Use Only ५० www.jainelibrary.org

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