Book Title: Sramana 1990 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 20
________________ ( १८ ) जैनधर्म संघ में नारी की महत्ता को यथासम्भव सुरक्षित रखने का प्रयत्न किया गया है। मथुरा में उपलब्ध अभिलेखों से यह स्पष्ट होता है कि धर्मकार्यों में पुरुषों के समान नारियाँ भी समान रूप से भाग लेती थीं। वे न केवल पुरुषों ने समान पूजा, उपासना कर सकतो थों, अपितु वे स्वेच्छानुसार दान भी करती थीं और मन्दिर आदि बनवाने में समान रूप से भागीदार होती थीं। जैन परम्परा में मूर्तियों पर जो प्राचीन अभिलेख उपलब्ध होते हैं उनमें सामान्य रूप से पुरुषों के साथ-साथ स्त्रियों के नाम भी उपलब्ध होते हैं जो इस तथ्य के स्पष्ट प्रमाण हैं।' यद्यपि दिगम्बर और श्वेताम्बर दोनों परम्पराओं में कुछ लोग यह मानते हैं कि स्त्री को जिन-प्रतिमा के स्पर्श, पूजन एवं अभिषेक का अधिकार नहीं है, किन्तु यह एक परवर्ती अवधारणा है । मथुरा के जैन शिल्प में साधु के समान ही साध्वी का अंकन और स्त्री-पुरुष दोनों के पूजा सम्बन्धी सामग्री सहित अंकन यही सूचित करते हैं कि प्राचीन काल में जैन परम्परा में दोनों का समान स्थान रहा है। आगमिक व्याख्याकाल में हम देखते हैं कि यद्यपि संघ के प्रमुख के रूप में आचार्य का पद पुरुषों के अधिकार में था, किसी स्त्री के आचार्य होने का कोई उल्लेख नहीं है, किन्तु गणिनो, प्रवर्तिनी, गणावच्छेदिनी, अभिषेका आदि पद स्त्रियों को प्रदान किये जाते थे और वे अपने भिक्षुणी संघ की स्वतन्त्र रूप से आन्तरिक व्यवस्था देखती थीं। यद्यपि तरुणी भिक्षणियों को सुरक्षा का दायित्व भिक्षु संघ को सौंपा गया था, किन्तु सामान्यतया भिक्षणियाँ अपनी सुरक्षा की व्यवस्था स्वयं रखती थीं, क्योंकि रात्रि एवं पदयात्रा में भिक्षु और भिक्षुणियों का एक ही साथ रहना सामान्यतया वजित था। इस सुरक्षा के लिए भिक्षुणी संघ में प्रतिहारी आदि के पद भी निर्मित किये गये थे। इस प्रकार हम देखते हैं कि साधना के क्षेत्र में स्त्री की गरिमा को यथासम्भव सुरक्षित रखा गयाफिर भी तथ्यों के अवलोकन से यह निश्चित होता है कि आगमिक व्याख्याओं के युग में और उसके पश्चात् जैन परम्परा में भी स्त्री की अपेक्षा पुरुष को महत्ता दो जाने लगी थी। १. जैन शिलालेख संग्रह, भाग २ २. ( क ) बृहत्कल्पभाष्य, भाग ३, २४११, २४०७, (स ) बृहत्कल्पभाष्य भाग ४, ४३३९ । (ग) व्यवहारसूत्र ५/१-१६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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