Book Title: Sramana 1990 10
Author(s): Ashok Kumar Singh
Publisher: Parshvanath Vidhyashram Varanasi

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Page 35
________________ ( ३३ ) श्रमण उसका विरोध कर रहे थे । यही कारण था कि भ० महावीर ने ब्रह्मचर्य को जोड़ा था। चूंकि वेश्या या गणिका परस्त्री नहीं थी, अतः परस्त्री-निषेध के माथ स्वपत्नी सन्तोषव्रत को भी जोड़ा गया और उसके अतिचारों में अपरिगृहीतागमन को भी सम्मिलित किया गया और कहा गया कि गृहस्थ उपासक को अपरिगृहीत (अविवाहित) स्त्री से सम्भोग नहीं करना चाहिये। पुनः जब यह माना गया कि परिग्रहण के बिना सम्भोग सम्भव नहीं, साथ ही द्रव्य देकर कुछ समय के लिये गृहीत वेश्या भी परिगृहीत की कोटि में आ जाती है, तो परिणामस्वरूप धनादि देकर अल्पकाल के लिए गहोत स्त्री ( इत्वरिका ) के साथ भी सम्भोग का निषेध किया गया और गृहस्थ उपासक के लिए आजीवन हेतु गृहीत अर्थात् विवाहित स्त्री के अतिरिक्त सभी प्रकार के यौन सम्बन्ध निषिद्ध माने गये। जैनाचार्यों में सोमदेव ( १०वीं शती) एक ऐसे आचार्य थे, जिन्होंने श्रावक के स्वपत्नी संतोष व्रत में, वेश्या को उपपत्नी मानकर उसका भोग राजा और श्रेष्ठी वर्ग के लिए विहित मान लिया था-किन्तु यह एक अपवाद ही था। ___यद्यपि आगमों एवं आगमिक व्याख्याओं से प्राप्त सूचनाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अन्य सभी लोगों के साथ जैनधर्म प्रति श्रद्धावान सामान्यजन भी किसी न किसी रूप में गणिकाओं से सम्बद्ध रहा है। आगमों में उल्लेख है कि कृष्ण वासुदेव की द्वारिका नगरी में अनंगसेना प्रमुख अनेक गणिकाएँ भी थीं। स्वयं ऋषभदेव के नोलांजना का नृत्य देखते समय उसकी मृत्यु से प्रतिबोधित होने की कथा दिगम्बर परम्परा में सुविश्रुत है। कुछ विद्वान् मथुरा में इसके अंकन को भी स्वीकार करते हैं । ज्ञाता आदि में देवदत्ता आदि गणिकाओं की समाज में सम्मानपूर्ण स्थिति की सचना मिलती है। समाज के सम्पन्न परिवारो के लोगों के वेश्याओं से सम्बन्ध थे, इसकी सूचना आगम, आगमिक व्याख्या साहित्य और जैन पौराणिक साहित्य में विपुल मात्रा में १. उपासकदशा १, ४८ । २. अणंगसेणा पामोक्खाणं अणेगाणं गणियासाहस्सीणं....."। --आवश्यकचूर्णि भाग १, पृ० ३५६ ३. आदिपुराण, पृ० १२५, भारतीय ज्ञानपीठ प्रकाशन, १९१९ । ४. अड्ढा जाव"""""सामित्तं भट्टित्तं महत्तरगतं आणा ईसर सेणावच्चं कारेमाणी..." Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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