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व्यवस्था रही है, उसके कारण उसमें नारी विशेष रूप से विधवा, परित्यक्ता और कुमारियाँ पुरुष के अत्याचार और उत्पीड़न का शिकार नहीं बनीं। जैनधर्म का भिक्षु णी संघ ऐसी नारियों के लिए एक शरण-स्थल रहा और उसने उन्हें सम्मानपर्ण और स्वावलम्बी जीवन जीना सीखाया। यही कारण था कि उसमें सतीप्रथा जैसी वीभत्स प्रथाएँ भी अपने जड़े नहीं जमा सकी। जैनधर्म में वे स्त्रियाँ, जो सामाजिक क्षेत्र में पुरुष के अधीन होकर जीवन जीती थीं, भिक्षु णी बनकर पुरुषों के लिए वन्दनीय और मार्गदर्शक बन जाती थीं। इस प्रकार तुलनात्मक दृष्टि से निश्चय ही हम यह कह सकते हैं कि हिन्दूधर्म की तुलना में जैनधर्म में नारी की स्थिति बहुत कुछ सम्मानपूर्ण रही है।
(२) बौद्धधर्म और जैनधर्म-बौद्धधर्म और जैनधर्म दोनों ही श्रमण परम्परा के धर्म रहे हैं और दोनों में भिक्षुणी संस्था की उपस्थिति रही है, फिर भी नारी के प्रति जैनधर्म की अपेक्षा बौद्धधर्म का दृष्टिकोण अधिक अनुदार रहा है। प्रथम तो भगवान् बुद्ध भिक्षुणी संघ की स्थापना के लिए सहमत ही नहीं हुए थे किन्तु जब अपनी क्षीरदायिका मौसी गौतमी और अन्तेवासी आनन्द ने किसी प्रकार अपने प्रभाव का उपयोग करके बुद्ध को सहमत करने का प्रयत्न किया तो बुद्ध ने भिक्षुणी संघ की स्थापना की स्वीकृति कुछ शर्तों के साथ प्रदान की। जबकि जैनधर्म में महावीर के पूर्व में भी पार्श्व का भिक्षणी संघ सुव्यवस्थित ढंग से कार्यरत था और महावीर को भी इस सम्बन्ध में किसी प्रकार का संकोच नहीं हुआ था । इस प्रकार जैनधर्म का भिक्षु णी संघ बौद्धधर्म के भिक्षणी संघ से पूर्ववर्ती था। पुनः बुद्ध ने भिक्षु णी संघ की स्थापना के समय ही जिन अष्ट-गुरुधर्मों ( अष्ट पुरुष की श्रेष्ठता सम्बन्धी नियमों) के पालन के लिए स्त्रियों को बाध्य किया, वे स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि बुद्ध की दृष्टि नारियों के प्रति अपेक्षाकृत अनुदार थी। इन अष्ट गुरुधर्मों के अनुसार भिक्षु णी संघ प्रत्येक क्षेत्र में भिक्ष संघ के अधीन था। चिर प्रव्रजिता और वयोवृद्ध भिक्षणी के लिए सद्यः प्रव्रजित भिक्षु न केवल वन्दनीय था अपितु वह उनका अनुशास्ता भी हो सकता था। भिक्ष णी को उपदेश देने का अधिकार भी नहीं था। यद्यपि यहाँ यह कहा जा सकता है कि बौद्धधर्म के समान ही जैनधर्म में भी तो चिरकाल की दीक्षित एवं वयोवृद्ध भिक्षु णी के लिए सद्यः दीक्षित भिक्षु वन्दनीय होता है, किन्तु मेरी दृष्टि में जैनधर्म में यह नियम बौद्धधर्म के प्रभाव अथवा इस देश की पुरुष प्रधान संस्कृति के कारण कालांतर में ही आया होगा। प्राचीनतम आगम आचारांग भिक्षु-भिक्षु णी के नियमों
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