________________
पक्कमाणुयोगद्दारे असंतकज्जवादणिरासो विसेसाभावादो। कि च -जदि पिंडे असंतो घडो समुप्पज्जइ तो वालुवादो वि तदुप्पत्ती होदु, असंतं पडि विसेसाभावादो। किं च-इदं चेव एदस्स कारणं, ण अण्णमिदि एवं पि ण जुज्जदे; णियामयाभावादो। भावे वा, कारणे कज्जस्स अत्थित्तं मोत्तूण कोवरो णियामयो होज्ज ? ण सहावो णियामओ, कज्जुप्पत्तीए पुवं कज्जस्सहावस्स* अभावादो। ण चासंतो* असंतस्स णियामयो होदि, अइप्पसंगादो। किं च-पिंडे घडो व्व तिहुवणमुप्पज्जउ, असंतं पडि भेदाभावादो। ण च एवं, परिमियकज्जुप्पत्तिदसणादो। किं च-समत्थो वि कुंभारो मट्टियपिडे घडं व पडं फिण्ण उप्पादेदि, विसेसाभावादो ? विसेसभावे वा सगसत्तं मोत्तूण कोवरो विसेसो होज्ज ? वुत्तं च--
यद्यसत्सर्वथा कार्य तन्माजनि खपुष्पवत् ।।
मोपादाननियामो भून्माश्वासः कार्यजन्मनि ।। ५ ।। अपेक्षा दोनोंमें कोई विशेषता नहीं है । दूसरे, यदि मृत्पिण्डमें अविद्यमान घट उससे उत्पन्न होता है तो वह मृत्पिण्डके समान वालुसे भी क्यों न उत्पन्न हो जावे ? अवश्य ही उत्पन्न हो जाना चाहिये, क्योंकि, असत्त्वकी अपेक्षा कोई विशेषता नहीं है । ( अर्थात् जैसे वह मृत्पिण्डमें अविद्यमान है वैसे ही वह वालुमें भी अविद्यमान है । फिर क्या कारण है कि वह मृत्पिण्डसे तो उत्पन्न होता है और वालुसे नहीं उत्पन्न होता ? अत एव मानना चाहिये कि घट मृत्पिण्डमें व्यक्तिरूपसे अविद्यमान होकर भी शक्तिरूपसे विद्यमान है, किन्तु वालुमें वह शक्तिरूपसे भी विद्यमान नहीं: अतएव वह जैसे मत्पिण्डसे उत्पन्न होता है वैसे वालसे उत्पन्न नहीं हो सकता।)
और भी-कार्यको सर्वथा असत् माननेपर यही इसका कारण है, अन्य नहीं है; यह भी घटित नहीं होता, क्योंकि, इसका कोई नियामक नहीं है । और यदि कोई नियामक है भी, तो वह कारणमें कार्यके अस्तित्वको छोड़कर दूसरा भला कौनसा नियामक हो सकता है ? यदि कहो कि स्वभाव नियामक है तो यह भी सम्भव नहीं है क्योंकि, कार्योत्पत्तिके पूर्व में कार्यके स्वभावका अभाव है । और एक असत् कुछ दूसरे असत्का नियामक हो नहीं सकता, क्योंकि, वैसा होनेपर अतिप्रसंग आता है । इसके अतिरिक्त-मृत्पिण्डमें जैसे घट उत्पन्न होता है वैसे ही उससे तीनों लोक भी उपत्न्न हो जाने चाहिये ; क्योंकि, असत्त्वकी अपेक्षा इनमें कोई भेद भी नहीं है । परन्तु ऐसा सम्भव नहीं है, क्योंकि, परमित कार्यकी उत्पत्ति देखी जाती है । इसके सिवाय समर्थ भी कुम्हार मृत्पिण्डमें जैसे घटको उत्पन्न करता है वैसे पटको क्यों नहीं उत्पन्न करता, क्योंकि, किसी भी विशेषताका यहां अभाव है । अथवा यदि कोई विशेषता है, तो वह अपने अस्तित्वको छोड़कर और दूसरी क्या हो सकती है ? कहा भी है--
यदि कार्य सर्वथा (पर्यायके समान द्रव्यसे भी असत् है तो वह आकाशकुसुमके समान उत्पन्न ही नहीं हो सकता। इसके अतिरिक्त वैसी अवस्थामें घटका उपादान मिट्टी है, तन्तु नहीं है, इस प्रकारका उपादाननियम भी नहीं बन सकेगा। इसीलिये अमुक कार्य अमुक कारणसे उत्पन्न होता है, अमुकसे तहीं; इस प्रकारका कोई भी आश्वासन कार्यकी उत्पत्तिमें नहीं हो सकता ।।५।।
ताप्रतो 'कज्जस्स सहावस्स' इति पाठः। मप्रतिपाठोऽयम् । का-ताप्रत्योः 'णवासंतो' इति पाठः । * आ. मी. ४२.
For Private & Personal Use Only
Jain Education International
www.jainelibrary.org