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छक्खंडागमे संतकम्मं
उदीरेण जदि एहिं बहुदराणि फद्दयाणि उदीरेदि तो एसा भुजगारउदीरणा । जदि अणंतरविदिक्कते समए बहुदराणि फद्दयाणि उदीरेद्रण एहिं थोवाणि उदीरेदि तो एसा अपदर उदीरणा । जदि तत्तियाणि तत्तियाणि चेव फद्दयाणि उदीरेदि तो एसा उदीरणा | अणुदीरएण उदीरिदे एसा अवत्तव्वउदीरणा । एदेण अट्ठपदेण सामित्तं भुजगार० अप्पदर० अवद्विद० अवत्तव्व० उदीरणाणं वत्तव्वं ।
एयजीवेण कालो बुच्चदे -- पंचणाणावरणीय - छदंसणावरणीय - पंचतराइयाणं च भुजगार - अप्पवरउदीरगाणं कालो जहण्णेण एगसमओ, उक्कस्सेण अंतोमुहुत्तं । अवट्ठिद० जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । णिद्दाणिद्दापयलायला थी गिद्धि -- सादासादवेयणीय-- सोलसकसाय - णवणोकसाय---मिच्छत्तसम्मत्त सम्मामिच्छत्त आउचउक्क चत्तारिगदि-पंचजादि-ओरालिय--वेउव्विय-आहारसरीर-तिण्णिअंगोवंग-ओरालिय- वेउब्विय- आहारसरीर- पाओग्गबंधण-संघाद-छसंठाणसंघडणकक्खड-गरुअ-लहुअ-उवघाद- परघाद-आदावुज्जोवउस्सास-पसत्थाप सत्थविहायगइ-तस थावर- बादर-सुहुम- पज्जत्तापज्जत्त- पत्तेय-साहारण- दूभग-सुस्सर दुस्सर-अणादेज्ज - अजस गित्ति--णीचागोदाणं भुजगार -- अप्पदरउदीरणकालो जह० एगसमओ, उक्क ० अंतमुत्तं । अवट्टिदउदीरणकालो जह० एगसमओ, उक्क०
स्पर्द्धकोंकी उदीरणा करके यदि इस समय बहुतर स्पर्द्धकोंकी उदीरणा करता है तो यह भुजाकारउदीरणा है । यदि अनन्तर अतीत समय में बहुतर स्पर्द्धकोंकी उदीरणा करके इस समय स्तोक स्पर्द्धकोंकी उदीरणा करता है तो यह अल्पतरउदीरणा है । यदि उतने उतने मात्र ही स्पर्द्धकोंकी उदीरणा करता है तो यह अवस्थितउदीरणा है । यदि पूर्व में उदीरणा नहीं की है और अब उदीरणा करता है तो यह अवक्तव्यउदीरणा है । इस अर्थपदके अनुसार यहां भुजाकार, अल्पतर अवस्थित और अवक्तव्य उदीरणाओंके स्वामित्वका कथन करना चाहिये ।
एक जीवकी अपेक्षा कालकी प्ररूपणा करते हैं- पांच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण और पांच अन्तराय प्रकृतियोंकी भुजाकार और अल्पतर उदीरणाओंका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त मात्र है । अवस्थितउदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे अन्तर्मुहूर्त मात्र है । निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला, स्त्यानगृद्धि, साता व असाता वेदनीय, सोलह कषाय, नौ नोकषाय, मिथ्यात्व, सम्यक्त्व, सम्यग्मिथ्यात्व, चार आयुकर्म, चार गतियां पांच जातियां, औदारिकशरीर, वैक्रियिकशरीर. आहारकशरीर, तीन अंगोपांग, औदारिक, वैक्रियिक व आहारकशरीरके योग्य बन्धन एवं संघात, छह संस्थान, छह संहनन, कर्कश, गुरु, लघु, उपघात, परघात, आतप, उद्योत, उच्छ्वास, प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, स्थावर, बादर, सूक्ष्म, पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारण, दुर्भग, सुस्वर, दुस्वर, अनादेय, अयशकीर्ति और नीचगोत्र ; इन प्रकृतियोंकी भुजाकार और अल्पतर उदीरणाओंका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त मात्र है । उनकी अवस्थित उदीरणाका काल जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से सात समय मात्र है । तैजस व कार्मण शरीर तथा तत्प्रायोग्य बन्धन व संघात, वर्ण, गन्ध, रस,
X ताप्रती ' अणुदीरणा उदीरेदि इति पाठ: ।
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