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छक्खंडागमे संतकम्म
वमाउट्रिदीया उक्कस्सए सादोदए वट्टमाणा* । देवाउअस्स जहण्णपदेसउदीरओ को होदि? देवो तेत्तीससागरोवमाउओ उक्कस्सए सादोदए वट्ठमाणओ।
चत्तारिगदि-पंचजादि-चत्तारिसरीर-तप्पाओग्गअंगोवंग-बंधण-संघाद-वण्ण-गंधरस-फास-अगुरुअलहुअ-उवधाद-परघाद--उज्जोव0--उस्सास-पसत्थापसत्थविहायगइतस-बादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीर-थिराथिर-सुहासुह-सुभग-दूभग-सुस्सर-दुस्सर-आदेज्जअणादेज्ज-जसगित्ति-अजसगित्ति-णिमिण-णीचच्चागोद-पंचंतराइयाणं जहण्णपदेसउदीरओ को होदि? सण्णिपंचिदिओ पज्जत्तओ उक्कस्ससंकिलिटुओ। णवरि गदिजादीणं अप्पप्पणो जादिवेदओ सव्वसंकिलिट्ठो । छसंट्ठाण-छसंघडणाणं जहण्णपदेसउदीरओ को होदि ? अप्पिद--अप्पिदसंठाण+--संघडणाणं वेदओ उक्कस्ससंकिलिट्ठो।
आहारसरीर-तप्पाओग्गअंगोवंग-बंधण-संघादाणं जहण्णपदेसउदीरओ को होदि ? पमत्तसंजदो उट्टाविदआहारसरीरो तप्पाओग्गसंकिलिट्ठो। चदुण्णमाणुपुव्वीणं जहण्णपदेसउदीरओ को होदि? तप्पाओग्गसंकिलिट्ठो विग्गहगदीए वट्टमाणओ। आदावणामाए जहण्णपदेसउदीरओ को होदि? पुढवीजीवो पज्जत्तो सव्वसंकिलिट्ठो। थावरवर्तमान मनुष्य व तिर्यंच यथाक्रमसे उन दो आयकर्मोंके जघन्य प्रदेशके उदीरक होते हैं । देवायुके जघन्य प्रदेशका उदीरक कौन होता? उसका उदीरक तेतीस सागरोपम प्रमाण आयुवाला व उत्कृष्ट सातोदयमें वर्तमान ऐसा देव होता है। __चार गतिनामकर्म, पांच जातिनामकर्म, चार शरीर और तत्प्रायोग्य आंगोपांग, बन्धन एवं संघात नामकर्म, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उद्योत, उच्छ्वास, प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति, अस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय, यशकीर्ति, अयशकीर्ति, निर्माण, नीच गोत्र, ऊंच गोत्र और पांच अन्तराय; इनके जघन्य प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुआ संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशका उदीरक होता है । विशेषत: इतनी है कि गति व जाति नामकर्मोंके अपनी अपनी जातिका वेदक सर्वसंक्लिष्ट जीव उनके जघन्य प्रदेशका उदीरक होता है। छह संस्थानों और छह संहननोंके जघन्य प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? विवक्षित विवक्षित संस्थान व संहननका वेदक प्राणी उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होता हुआ उनके जघन्य प्रदेशका उदीरक होता है ।
आहारकशरीर और तत्प्रायोग्य आंगोपांग, बन्धन व संघातके जघन्य प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? उसका उदीरक आहारकशरीरको उत्पन्न करनेवाला तत्प्रायोग्य संक्लेशको प्राप्त हुआ प्रमत्तसंयत जीव होता है । चार आनुपूर्वी नामकर्मोके जघन्य प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? उसका उदीरक तत्प्रायोग्य संक्लेशको प्राप्त हुआ विग्रहगतिमें वर्तमान जीव होता है । आतप नामकर्मके जघन्य प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? सर्वसंक्लिष्ट पृथिवीकायिक पर्याप्त
O अ-काप्रत्णे: '-ट्रिदीयादिउक्कस्सए', ताप्रतौ '-द्विदीयादि (यो) उक्कस्सए' इति पाटः । * ताप्रतौ वट्टमाणओ' इति पाठः। ताप्रती 'उवधाद-उज्जोव ' इति पाठः।
ताप्रतौ 'अप्पिदअणप्पिदसंठाण-' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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