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________________ २५८ ) छक्खंडागमे संतकम्म वमाउट्रिदीया उक्कस्सए सादोदए वट्टमाणा* । देवाउअस्स जहण्णपदेसउदीरओ को होदि? देवो तेत्तीससागरोवमाउओ उक्कस्सए सादोदए वट्ठमाणओ। चत्तारिगदि-पंचजादि-चत्तारिसरीर-तप्पाओग्गअंगोवंग-बंधण-संघाद-वण्ण-गंधरस-फास-अगुरुअलहुअ-उवधाद-परघाद--उज्जोव0--उस्सास-पसत्थापसत्थविहायगइतस-बादर-पज्जत्त-पत्तेयसरीर-थिराथिर-सुहासुह-सुभग-दूभग-सुस्सर-दुस्सर-आदेज्जअणादेज्ज-जसगित्ति-अजसगित्ति-णिमिण-णीचच्चागोद-पंचंतराइयाणं जहण्णपदेसउदीरओ को होदि? सण्णिपंचिदिओ पज्जत्तओ उक्कस्ससंकिलिटुओ। णवरि गदिजादीणं अप्पप्पणो जादिवेदओ सव्वसंकिलिट्ठो । छसंट्ठाण-छसंघडणाणं जहण्णपदेसउदीरओ को होदि ? अप्पिद--अप्पिदसंठाण+--संघडणाणं वेदओ उक्कस्ससंकिलिट्ठो। आहारसरीर-तप्पाओग्गअंगोवंग-बंधण-संघादाणं जहण्णपदेसउदीरओ को होदि ? पमत्तसंजदो उट्टाविदआहारसरीरो तप्पाओग्गसंकिलिट्ठो। चदुण्णमाणुपुव्वीणं जहण्णपदेसउदीरओ को होदि? तप्पाओग्गसंकिलिट्ठो विग्गहगदीए वट्टमाणओ। आदावणामाए जहण्णपदेसउदीरओ को होदि? पुढवीजीवो पज्जत्तो सव्वसंकिलिट्ठो। थावरवर्तमान मनुष्य व तिर्यंच यथाक्रमसे उन दो आयकर्मोंके जघन्य प्रदेशके उदीरक होते हैं । देवायुके जघन्य प्रदेशका उदीरक कौन होता? उसका उदीरक तेतीस सागरोपम प्रमाण आयुवाला व उत्कृष्ट सातोदयमें वर्तमान ऐसा देव होता है। __चार गतिनामकर्म, पांच जातिनामकर्म, चार शरीर और तत्प्रायोग्य आंगोपांग, बन्धन एवं संघात नामकर्म, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उद्योत, उच्छ्वास, प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति, अस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय, यशकीर्ति, अयशकीर्ति, निर्माण, नीच गोत्र, ऊंच गोत्र और पांच अन्तराय; इनके जघन्य प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हुआ संज्ञी पंचेन्द्रिय पर्याप्त जीव उक्त प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशका उदीरक होता है । विशेषत: इतनी है कि गति व जाति नामकर्मोंके अपनी अपनी जातिका वेदक सर्वसंक्लिष्ट जीव उनके जघन्य प्रदेशका उदीरक होता है। छह संस्थानों और छह संहननोंके जघन्य प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? विवक्षित विवक्षित संस्थान व संहननका वेदक प्राणी उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त होता हुआ उनके जघन्य प्रदेशका उदीरक होता है । आहारकशरीर और तत्प्रायोग्य आंगोपांग, बन्धन व संघातके जघन्य प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? उसका उदीरक आहारकशरीरको उत्पन्न करनेवाला तत्प्रायोग्य संक्लेशको प्राप्त हुआ प्रमत्तसंयत जीव होता है । चार आनुपूर्वी नामकर्मोके जघन्य प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? उसका उदीरक तत्प्रायोग्य संक्लेशको प्राप्त हुआ विग्रहगतिमें वर्तमान जीव होता है । आतप नामकर्मके जघन्य प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? सर्वसंक्लिष्ट पृथिवीकायिक पर्याप्त O अ-काप्रत्णे: '-ट्रिदीयादिउक्कस्सए', ताप्रतौ '-द्विदीयादि (यो) उक्कस्सए' इति पाटः । * ताप्रतौ वट्टमाणओ' इति पाठः। ताप्रती 'उवधाद-उज्जोव ' इति पाठः। ताप्रतौ 'अप्पिदअणप्पिदसंठाण-' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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