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छक्खंडागमे संतकम्म
उक्कस्सओ पदेसउदओ कस्स? चरिमसमयउस्सासणिरोहकारयस्स । सुस्सर-दुस्सराणं उक्कस्सओ पदेसउदओ कस्स? चरिमसमयवचिजोगणिरोहकारयस्स।
पंचिदियजादि--तस--बादर--पज्जत्त--जसकित्ति-सुभग-आदेज्ज-उच्चागोदाणं उक्कस्सओ पदेसउदओ कस्स? चरिमसमयभवसिद्धियस्स । सव्व * कम्माणं पिx जम्हि जम्हि गुणिदकम्मंसिओ त्ति ण भणिदं तम्हि तम्हि गुणिदकम्मंसिओ त्ति वत्तव्वं । चदुजादि-थावर-सुहुम-अपज्जत्त-साहारणसरीराणमुक्कस्सओ पदेसउदओ कस्स? संजमासंजमसंजमगुणसेडीओ एगळं काढूण अप्पिदेसुप्पण्णस्स। अजसकित्तिदूभग-अणादेज्ज-णीचागोदाणमुक्कस्सओ पदेसउदओ कस्स ? संजमासंजम-संजमदसणमोहणीयक्खवगगुणसेडिसीसयाणि तिण्णि वि एगट्ठ कादूण ट्ठियस्स जाधे गुणसेडिसीसयाणि उदयमागदाणि ताधे उक्कस्सओ पदेसउदओ।
पंचण्णमंतराइयाणं उक्कस्सओ पदेसउदओ कस्स? चरिमसमयछदुमत्थस्स । तित्थयरणामाए उक्कस्सओ पदेसउदओ कस्स? गुणिदकम्मंसियस्स चरिमसमयभवसिद्धियस्स । एवमुक्कस्सं सामित्तं समत्तं । __ एत्तो जहण्णसामित्तं । तं जहा- मदिआवरणस्स जहण्णओ पदेसउदओ कस्स? जो
उत्कृष्ट प्रदेश उदय किसके होता है ? वह अन्तिम समयवर्ती उच्छवासनिरोधकके होता है। सुस्वर और दुस्वरका उत्कृष्ट प्रदेश उदय किसके होता है ? वह अन्तिम समयवर्ती वचनयोगनिरोधकके होता है।
पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, यशकीर्ति, सुभग, आदेय और उच्चगोत्र; इनका उत्कृष्ट प्रदेश उदय किसके होता है? वह अन्तिम समयवर्ती भव्यसिद्धिकके होता है। सभी कर्मोके जहां जहां 'गुणितकर्माशिक ' नहीं कहा है वहां वहां 'गुणितकर्माशिक' कहना चाहिये। चार जाति नामकर्म, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशउदय किसके होता है ? संयमासंयम और संयम गुणश्रेणियोंको एकत्र करके विवक्षित जीवोंमें उत्पन्न हुए जीवके उनका उत्कृष्ट प्रदेशउदय होता है। अयशकीर्ति, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रका उत्कष्ट प्रदेश उदय किसके होता है ? संयमासंयम, संयम और दर्शनमोहनीयक्षपक: इन तीनों ही गुणश्रेणिशीर्षकोंको एकत्र करके स्थित जीवके जब गुणश्रेणिशीर्षक उदयको प्राप्त होते हैं तब उक्त प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेश उदय होता है।
पांच अन्तराय कर्मोंका उत्कृष्ट प्रदेश उदय किसके होता है ? वह अन्तिम समयवर्ती छदमस्थके होता है। तीर्थंकर नामकर्मका उत्कृष्ट प्रदेश उदय किसके होता है ? वह गणितकौशिक अन्तिम समयवर्ती भव्य सिद्धिकके होता है । इस प्रकार उत्कृष्ट स्वामित्व समाप्त हुआ।
यहां जघन्य स्वामित्वका कथन करते हैं। यथा- मतिज्ञानावरणका जघन्य प्रदेश उदय
आतपनाम्नः उत्कृष्ट: प्रदेशोदयः। एकेन्द्रियो द्वीन्द्रियस्थिति झटित्येव स्वयोग्यां करोति, न त्रीन्द्रियादिस्थितिमिति द्वीन्द्रियग्रहणम् । मलय. * अ-काप्रत्योः 'भवसिद्धियसव्व' इति पाठः। 8. ताप्रतौ नोपलभ्यते पदमिदम् । 0 ताप्रतो '-संजमगुण सेडीओ-दसणमोहणीयक्ख वगसीसयाणि' इति पाठः ।
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