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________________ ३०२) छक्खंडागमे संतकम्म उक्कस्सओ पदेसउदओ कस्स? चरिमसमयउस्सासणिरोहकारयस्स । सुस्सर-दुस्सराणं उक्कस्सओ पदेसउदओ कस्स? चरिमसमयवचिजोगणिरोहकारयस्स। पंचिदियजादि--तस--बादर--पज्जत्त--जसकित्ति-सुभग-आदेज्ज-उच्चागोदाणं उक्कस्सओ पदेसउदओ कस्स? चरिमसमयभवसिद्धियस्स । सव्व * कम्माणं पिx जम्हि जम्हि गुणिदकम्मंसिओ त्ति ण भणिदं तम्हि तम्हि गुणिदकम्मंसिओ त्ति वत्तव्वं । चदुजादि-थावर-सुहुम-अपज्जत्त-साहारणसरीराणमुक्कस्सओ पदेसउदओ कस्स? संजमासंजमसंजमगुणसेडीओ एगळं काढूण अप्पिदेसुप्पण्णस्स। अजसकित्तिदूभग-अणादेज्ज-णीचागोदाणमुक्कस्सओ पदेसउदओ कस्स ? संजमासंजम-संजमदसणमोहणीयक्खवगगुणसेडिसीसयाणि तिण्णि वि एगट्ठ कादूण ट्ठियस्स जाधे गुणसेडिसीसयाणि उदयमागदाणि ताधे उक्कस्सओ पदेसउदओ। पंचण्णमंतराइयाणं उक्कस्सओ पदेसउदओ कस्स? चरिमसमयछदुमत्थस्स । तित्थयरणामाए उक्कस्सओ पदेसउदओ कस्स? गुणिदकम्मंसियस्स चरिमसमयभवसिद्धियस्स । एवमुक्कस्सं सामित्तं समत्तं । __ एत्तो जहण्णसामित्तं । तं जहा- मदिआवरणस्स जहण्णओ पदेसउदओ कस्स? जो उत्कृष्ट प्रदेश उदय किसके होता है ? वह अन्तिम समयवर्ती उच्छवासनिरोधकके होता है। सुस्वर और दुस्वरका उत्कृष्ट प्रदेश उदय किसके होता है ? वह अन्तिम समयवर्ती वचनयोगनिरोधकके होता है। पंचेन्द्रिय जाति, त्रस, बादर, पर्याप्त, यशकीर्ति, सुभग, आदेय और उच्चगोत्र; इनका उत्कृष्ट प्रदेश उदय किसके होता है? वह अन्तिम समयवर्ती भव्यसिद्धिकके होता है। सभी कर्मोके जहां जहां 'गुणितकर्माशिक ' नहीं कहा है वहां वहां 'गुणितकर्माशिक' कहना चाहिये। चार जाति नामकर्म, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणशरीरका उत्कृष्ट प्रदेशउदय किसके होता है ? संयमासंयम और संयम गुणश्रेणियोंको एकत्र करके विवक्षित जीवोंमें उत्पन्न हुए जीवके उनका उत्कृष्ट प्रदेशउदय होता है। अयशकीर्ति, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रका उत्कष्ट प्रदेश उदय किसके होता है ? संयमासंयम, संयम और दर्शनमोहनीयक्षपक: इन तीनों ही गुणश्रेणिशीर्षकोंको एकत्र करके स्थित जीवके जब गुणश्रेणिशीर्षक उदयको प्राप्त होते हैं तब उक्त प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेश उदय होता है। पांच अन्तराय कर्मोंका उत्कृष्ट प्रदेश उदय किसके होता है ? वह अन्तिम समयवर्ती छदमस्थके होता है। तीर्थंकर नामकर्मका उत्कृष्ट प्रदेश उदय किसके होता है ? वह गणितकौशिक अन्तिम समयवर्ती भव्य सिद्धिकके होता है । इस प्रकार उत्कृष्ट स्वामित्व समाप्त हुआ। यहां जघन्य स्वामित्वका कथन करते हैं। यथा- मतिज्ञानावरणका जघन्य प्रदेश उदय आतपनाम्नः उत्कृष्ट: प्रदेशोदयः। एकेन्द्रियो द्वीन्द्रियस्थिति झटित्येव स्वयोग्यां करोति, न त्रीन्द्रियादिस्थितिमिति द्वीन्द्रियग्रहणम् । मलय. * अ-काप्रत्योः 'भवसिद्धियसव्व' इति पाठः। 8. ताप्रतौ नोपलभ्यते पदमिदम् । 0 ताप्रतो '-संजमगुण सेडीओ-दसणमोहणीयक्ख वगसीसयाणि' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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