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"उदयाणुयोगद्दारे पदेसोदयपरूवणा
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उवघाद-परघाद-पसत्यापसत्थविहायगइ-पत्तेयसरीर-थिराथिर - सुहासुह--1 ह-- णिमिणणामामुक्कस्सओ पदेस उदओ कस्स ? चरिमसमयसजोगिस्स । पंचण्णं संघडणाणं उक्कस्सओ पदेसउदओ कस्स ? संजमासंजम - संजम - अणंताणुबंधिविसंजोयणगुणसेडीओ तिण्णि वि एगट्ठे काढूण ट्ठियसंजदस्स जाधे गुणसेडिसीसयाणि तिष्णि वि उदयमागदाणि ताधे पंचणं संघडणाणं उक्कस्सओ पदेसउदओ । णिरयाणुपुब्वीए णिरयभंगो । तिरिक्खापुव्वीए तिरिक्खगइभंगो । देवाणुपुव्वीए देवगइभंगो । मणुसाणुपुव्वीए उक्कस्सओ पदेसउदओ कस्स ? संजमासंजम संजम दंसणमोहणीयक्खवणगुणसेडीओ तिणि वि एगट्ठे काढूण मणुस्सेसु विग्गहं कादृणुववण्णस्स ।
उज्जोवणामा उक्कस्सओ पदेसउदओ कस्स ? जो संजदो उत्तरसरीरं विउव्विदो अप्पमत्तभावं गदो तस्स उक्कस्सओ पदेसउदओ आदावणामाए उक्कस्सओ पदेसउदओ • कस्स ? जो गुणिदकम्मंसिओ मदो बीइंदिएसु बीइंदियसमगं ठिदिसंतकम्मं कादूण इंदितं गदो, तत्थ वि सव्वलहुअं एइंदियसमगं ठिदिसंतकम्मं काढूण बादरपुढवीजीवेसु उववण्णो तस्स पढमसमयपज्जत्तयस्स उक्कस्सओ पदेसउदओ । उस्सासस्स
प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ और निर्माण; इन नामकर्मोंका उत्कृष्ट प्रदेश उदय किसके होता है ? वह चरम समयवर्ती सयोगीके होता है । शेष पांच संहननोंका उत्कृष्ट प्रदेश उदय किसके होता है ? संयमासंयम, संयम और अनन्तानुबंन्धविसंयोजन रूप तीनों ही गुणश्रेणियोंको एकत्र करके स्थित संयतके जब तीनों ही गुणश्रेणिशीर्षक उदयको प्राप्त होते हैं तब उन पांच संहननोंका उत्कृष्ट प्रदेश उदय होता है । नारकानुपूर्वीकी प्ररूपणा नरकगति के समान है । तिर्यगानुपूर्वीकी प्ररूपणा तिर्यग्गति के समान है । देवानुपूर्वीकी प्ररूपणा देवगतिके समान है । मनुष्यानुपूर्वीका उत्कृष्ट प्रदेश उदय किसके होता है ? संयमासंयम, संयम और दर्शनमोहनीयक्षपण स्वरूप तीनों ही गुणश्रेणियोंको एकत्र करके मनुष्यों में विग्रह करके उत्पन्न हुए जीवके उसका उत्कृष्ट प्रदेशउदय होता है ।
उद्योत नामकर्मका उत्कृष्ट प्रदेश उदय किसके होता है ? जो संयत जीव उत्तर उरीरकी विक्रिया करके अप्रमत्त अवस्थाको प्राप्त हुआ है उसके उसका उत्कृष्ट प्रदेश उदय होता है । आतप नामकर्मका उत्कृष्ट प्रदेशउदय किसके होता है ? जो गुणितकर्माशिक मरणको प्राप्त होकर द्वीन्द्रियों में द्वीन्द्रियके समान स्थितिसत्त्वको करके बादर पृथिवीकायिक जीवों में उत्पन्न हुआ है, उस प्रथम समयवर्ती पर्याप्तकके उसका उत्कृष्ट प्रदेश उदय होता है । उच्छ्वासका
बेइंदिय थावरगो कम्मं काऊग तस्समं खिष्पं । आयावस्स उ तब्वेइ पढमसमयम्मि वट्टतो ॥ क. प्र ५, १९. गुणितकर्माशः पंचेन्द्रियः सम्प्रदृष्टिर्जातः, ततः सम्यक्त्वनिमित्तां गुणश्रेणि कृतवान् । ततस्तस्या गुणश्रेणीतः प्रतिपतितो मिथ्यात्वं गतः । गत्वा च द्वीन्द्रियमध्ये समुत्पन्नः । तत्र च द्वीन्द्रियप्रायोग्यां स्थिति मुक्त्वा शेषां सर्वामध्यवर्तयति । ततस्ततोऽपि मृत्वा एकेन्द्रियो जातः । तत्रैकेन्द्रियसमां स्थिति करोति । शीघ्रमेव च शरीरपर्याप्त्या पर्याप्तः, तस्य तद्वेदिन आतपवेदिन खरबादरपृथ्वीकाधिकस्य शरीरपर्याप्त्यनन्तरं प्रथम समय
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