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________________ उदयाणुयोगद्दारे पदेसोदयपरूवणा ( ३०३ सुहमणिगोदजीवेसु कम्मढिदिमच्छिदाउओ सम्वेहि आवासएहि अभवसिद्धियपाओग्गजहण्णयं काऊण तदो संजमासंजमं संजमं च बहुसो लध्दूण चत्तारिवारे कसाए उवसामेदूण एइंदिएसु सुहमेसु गदो, तत्थ य असंखेज्जाणि वस्ससहस्साणि अच्छिदूण मणुस्सेसु आगदो पुवकोडि* संजममणुपालेदूण अंतोमहत्तावसेसे मिच्छत्तं गदो दसवाससहस्सिएसु देवेसु उववण्णो पुणो तत्थ सम्मत्तं घेत्तूण आउअमणुपालिय अंतोमुहुत्तावसेसे मिच्छत्तं गदो वियट्टिदाओ द्विदीओ उक्कस्ससंकिलिट्ठो एइंदिएसु गदो तस्स पढमसमयस्स मदिआवरणस्स जहण्णगो पदेसउदओ । सुद-मणपज्जवकेवलणाणावरण-चक्खु-अचक्खु-केवलदसणावरणाणं मदिणाणावरणभंगो। ओहिणाणओहिदंसणावरणाणं जहण्णओ पदेसउदओ कस्स ? जो मदिआवरणस्स अपच्छिमे संजमभवग्गहणे वट्टमाणगो सो चेव अपरिवट्टिदेण सम्मत्तेण वेमाणिएसु उववण्णो मिच्छत्तं गदो अंतोकोडाकोडीदो तीसंसागरोवमकोडाकोडीओ पबद्धाओ जाधे उक्क० दिदी आवलियपबद्धा ताधे ओहिणाण--ओहिदसणावरणाणं जहण्णओ पदेसउदओ । णिद्दा-पयलाणं जहण्णओ पदेस--- किसके होता है ? जो सूक्ष्म निगोद जीवोंमें कर्मस्थिति मात्र सूक्ष्म निगोदकी आयुके साथ रहकर सब आवासों द्वारा अभव्यसिद्धिक प्रायोग्य जघन्य करके, तत्पश्चात् संयमासंयम और संयमको बहुत वार प्राप्त करके, चार वार कषायोंको उपशमा कर सूक्ष्म एकेन्द्रियोंमें गया है और वहां असंख्यात हजार वर्ष रहकर मनुष्योंमें आया है, यहां पूर्वकोटि काल तक संयमको पालकर अन्तर्मुहर्त शेष रहनेपर मिथ्यात्वको प्राप्त होकर दस हजार वर्ष मात्र आयुवाले देवों में उत्पन्न हुआ है, पुनः वहां सम्यक्त्वको ग्रहणकर आयुको पालकर उसके अन्तर्मुहूर्त शेष रहनेपर मिथ्यात्वको प्राप्त होकर स्थितियोंका विकर्षण करता हुआ उत्कृष्ट संक्लेशको प्राप्त हो एकेन्द्रियोंमें पहुंचा है उसके प्रथम समयमें मतिज्ञानावरणका जघन्य प्रदेश उदय होता है। श्रुतज्ञानावरण, मन:पर्ययज्ञानावरण, केवलज्ञानावरण, चक्षुदर्शनावरण, अचक्षुदर्शनावरण और केवलदर्शनावरणके जघन्य प्रदेश उदयकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है। अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरणका जघन्य प्रदेश उदय किसके होता है ? जो मतिज्ञानावरणके अन्तिम संयमभवग्रहणमें वर्तमान है वही अपरिवर्तित सम्यक्त्वके साथ वैमानिक देवोंमें उत्पन्न होकर मिथ्यात्वको प्राप्त हो अन्तःकोडाकोडिसे तीस कोडाकोडि सागरोपमोंको बांधता है जब उत्कृष्ट स्थिति आवली समयप्रबद्ध मात्र होती है तब उसके अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरणका जघन्य प्रदेश उदय होता है । निद्रा और प्रचलाका जघन्य प्रदेश उदय किसके होता है ? जो जीव *अ-काप्रत्योः 'पुत्वकोडी' इति पाठः। पगयं तु खवियकम्मे जहन्नसामी जहन्नदेवठि । भिन्नमहते सेसे मिच्छतगती अतिकिलिटठो । कालगएगिदियगो पढमे समये व मइ-सुयावरणे । केवलदुग-मणपज्जवचक्ख-अचक्खूण आवरणा।। क. प्र. ५, २०-२१. 0 का-जाप्रत्यो: 'अच्छिम' इति पाठः। * ओहीणसंजमाओ देवत्तगए गयस्स मिच्छत्तं । उक्कोसटिइबंधे विकड्डणा आलिगं गंतु ।। क. प्र. ५, २२. ओहीण त्ति-क्षपितकर्माशः संयम प्रतिपन्नः समुत्पन्नावधि ज्ञानदर्शनोऽप्रतिपतितावधिज्ञानदर्शन एव देवो जातः, तत्र चान्तर्मुहर्त गते मिथ्यात्वं प्रतिपन्नः । ततो मिथ्यात्वप्रत्ययेनोत्कृष्टां स्थिति बद्धमारभते, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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