Book Title: Shatkhandagama Pustak 15
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 362
________________ उदयानुयोगद्दारे पदेसोदयपरूवणा ( ३२७ एगसमओ, उक्क० तिष्णि पलिदोवमाणि समऊणाणि । तिरिक्खाउअस्स मणुसाउअभंगो । देवाउअस्स णिरयाउअभंगो । णिरयगइणामाए भुजगार० जह० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे० भागो । अप्पदर० जह० एगसमओ, उक्क० पलिदो० असंखे ० भागो । अवट्ठिद० जह० एगसमओ, उक्क० संखेज्जा समया । मणुसगइ-तिरिक्खगइ देवगइणामाणं णिरयगइभंगो । ओरालिय-वेउव्विय-तेजा - कम्मइयसरीराणं मदिआवरणभंगो। आहारसरीरस्स गिद्दाए भंगो । समचउरससंठाण वज्जरिसहणारायणसंघडण वण्ण-गंध-रस- फास अगुरुअलहुअ -- उवघाद - परघाद - - उस्सास -- पसत्थापसत्यविहायगइ - - तस -- बादर - पज्जत्तपत्तेयसरीर-थिराथिर - सुहासु ह- सुभग- दूभग-सुस्सर दुस्सर आदेज्ज- अणादेज्ज-जस कित्ति - अजस कित्तिणिमिणुच्चागोद--पंचंतराइयाणं मदिआवरणभंगो। चदुसंठाण-पंच संघडाणं भुजगार - अप्पदर० जह० एगसमओ, उक्क० पुव्वकोडी देसूणा । अवट्ठिदं सुगमं । हुंडसंठाण णीचागोदाणं मदिआवरणभंगो । उज्जोवणामाए भुजगार- अप्पदर० जह० एगसमओ, उक्क० पलिदो ० असंखे ० भागो । आदाव-यावर - सुहुम-अपज्जत्त-साहारणाणं भुजगारो अप्पदरो वा उक्क० अंतोमुहुत्तं । सेसं सुगमं । एसुवदेसो नागहत्थिसमणा । का अल्पतर उदय जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से एक समय कम तीन पल्योपम मात्र रहता है । तिर्यंच आयुकी प्ररूपणा मनुष्यायुके समान है । देवायुकी प्ररूपणा नारकायुके समान है । नरकगति नामकर्मका भुजाकार उदय जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग रहता है । उसका अल्पतर उदय जघन्यसे एक समय और उत्कर्ष से पल्योपमके असंख्यातवें भाग रहता है । उसका अवस्थित उदय जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे संख्यात समय रहता है । मनुष्यगति तिर्यंचगति और देवगति नामकर्मों की प्ररूपणा नरकगतिके समान है । औदारिक, वैक्रियिक, तैजस और कार्मण शरीरनामकर्मों की प्ररूपणा मतिज्ञानावरण के समान है । आहारकशरीर की प्ररूपणा निद्राके समान है । समचतुरस्रसंस्थान, वज्रर्षभनाराचसंहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर, पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, आदेय, अनादेय, यशकीर्ति, अयशकीर्ति, निर्माण, उच्चगोत्र और पांच अन्तराय; इन प्रकृतियोंकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है। चार संस्थान और पांच संहननोंका भुजाकार और अल्पतर उदय जघन्यसे एक समय उत्कर्षसे कुछ कम एक पूर्वकोटि मात्र रहता है । उनके अवस्थित उदयकी प्ररूपणा सुगम है । हुण्डकसंस्थान और नीचगोत्रकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है । उद्योत नामकर्मका भुजाकार और अल्पतर उदय जघन्यसे एक समय और उत्कर्षसे पल्योपमके असंख्यातवें भाग मात्र रहता है। आतप, स्थावर, सूक्ष्म अपर्याप्त और साधारण नामकर्मोंका भुजाकार और अल्पतर उदय उत्कर्ष से अन्तर्मुहूर्त मात्र रहता है । शेष प्ररूपणा सुगम है । यह उपदेश नागहस्ती श्रमणका है । अ-काप्रत्यो: ' खवगाणं ' ताप्रतौ ' खवणाणं ' इति पाठ: For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org

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