________________
३३४ )
छक्खंडागमे संतकम्म
उक्क० वड्डी।
___ चदुण्णं णाणावरणीयाणं तिण्णं दसणावरणीयाणं उक्क० हाणी कस्स ? जो पढमसमयउवसंतकसाओ मदो संतो से काले देवो जादो तस्स अंतोमुहुत्तदेवस्स जाधे गुणसेडिसोसयं पढमसमयणिज्जिण्णं ताधे उक्क० हाणी। ओहिणाण-ओहिदंसणावरणाणं उक्क० हाणी कस्स? परिवदमाणयस्स सुहमसांपराइयस्स जाधे अपच्छिमं उवसंतकसाय गुणसेडिसीसयं णिज्जरिज्जमाणं णिज्जिण्णं ताधे तस्स उक्क० हाणी । णवरि पढमसमयउप्पण्णओहिणाणस्से त्ति वत्तव्वं ।
पंचणाणावरणीय-णवदंसणावरणीयाणमुक्कस्समवढाणं कस्स? जो अधापवत्तसंजदो तप्पाओग्गजहण्णसंकिलेसादो तप्पाओग्गमज्झिमपरिणामुक्कस्सविसोहिं गदो से काले वि तारिसिं विसोहि गदो पलिदो० असंखे० भागपडिभागब्भहिया गुणसेडी जादो, जावे एदाणि गुणसेडिसीसयाणि पवेदेदि ताधे तस्स उक्कस्समवढाणं। एवं सेसाणं पि कम्माणं उक्कस्सवड्ढि-हाणि-अवट्ठाणाणं सामित्तं जाणिऊण वत्तव्वं ।
जहणिया वड्ढी हाणी अवट्ठाणं च सव्वकम्माणमेक्को पदेसो अण्णदरस्स भवे । णवरि देवणिरयाउअं-तित्थयरणामकम्माणि मोत्तूण वत्तव्वं ।
वृद्धि होती है।
चार ज्ञानावरणीय और तीन दर्शनावरणीयकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? जो प्रथम समयवर्ती उपशान्तकषाय जीव मरकर अनन्तर कालमें देव हो जाता है उस अन्तर्मुहूर्तवर्ती देवका गुणश्रेणिशीर्ष जब प्रथम समय निर्जराप्राप्त होता है तब उसके उक्त प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट हानि होती है। अवधिज्ञानावरण और अवधिदर्शनावरणकी उत्कृष्ट हानि किसके होती है ? श्रेणिसे गिरते हुए सूक्ष्मसाम्परायिक जीवका जब निर्जीर्यमाण अन्तिम उपशान्तकषाय गुणश्रेणिशीर्ष निर्जीर्ण हो चुकता है तब उसके उनकी उत्कृष्ट हानि होती है। विशेष इतना है कि अवधिज्ञान उत्पन्न होनेके प्रथम समयमें, यह कहना चाहिये ।
पांच ज्ञानावरणीय और नौ दर्शनावरणीय प्रकृतियोंका उत्कृष्ट अवस्थान किसके होता है ? जो अधःप्रवृत्त संयत जीव तत्प्रायोग्य जघन्य संक्लेशसे तत्प्रायोग मध्यम परिणाम रूप उत्कृष्ट विशुद्धिको प्राप्त होता है व अनन्तर काल में भी वैसी विशुद्धिको प्राप्त होता है जिससे गणश्रेणि पल्योपमके असंख्यातवें भाग रूप प्रतिभागसे अधिक हो जाती है, जब वह इन गणश्रेणिशीर्षकोंका वेदन करता है तब उसके उपर्युक्त प्रकृतियोंका उत्कृष्ट अवस्थान होता है । इसी प्रकारसे शेष कर्मोंकी भी उत्कृष्ट वृद्धि, हानि व अवस्थानके स्वामित्वका जानकर कथन करना चाहिये।
सब कर्मोंकी जघन्य वृद्धि, हानि व अवस्थान एक प्रदेश स्वरूप होकर अन्यतर जीवके होते हैं। विशेष इतना है कि देवायु, नारकायु और तीर्थंकर नामकर्म को छोडकर यह कथन करना चाहिये।
॥ अप्रतौ 'मदो संते से काले देवे' इति पाठः।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org