Book Title: Shatkhandagama Pustak 15
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 343
________________ ३०८) छक्खंडागमे संतकम्म -सरीर-तेजा-कम्मइयसरीरबंधण-संघाद-छसंठाण-छसंघडण-वण्ण-गंध-रस-फास-अगुरुअलहुअ-उवघाद-परघाद-उज्जोव-उस्सास-पसत्थापसत्थविहायगइ-तस-बादर-पज्जत्तपत्तेयसरीर-थिराथिर-सुहासुह-सुभग-दूभग-सुस्सर-दुस्सर-आदेज्ज-अणादेज्ज-जसकित्ति-अजसकित्ति-णिमिणणामाणं ओरालियसरीरभंगो। आहारसरीर-आहारसरीरंगोवंग-बंधण-संघादणामाणं जहण्णउदओ कस्स? अभवसिद्धियपाओग्गजहण्णयं कादूण चत्तारिवारे कसाए उवसामेदूण अपच्छिमे भवग्गहणे देसूणपुवकोडि संजममणुपालेऊण आहारएण उत्तरसरीरं विउव्विदो सव्वाहि पज्जत्तीहि पज्जत्तयदो, तस्स जहण्णओ पदेसउदओ। चदुण्णमाणुपुन्वीणं जहण्णओ पदेसउदओ कस्स ? पढमसमयतब्भवत्थस्स । आदावणामाए जहण्णओ उदओ कस्स ? मदिआवरणस्स खविदकम्मंसियविहाणेण आगंतूण जो आदावणामाए वेदएसु उववण्णो आणापाणपज्जत्तीए पज्जत्तयदो तस्स पढमसमयपज्जत्तयदस्स जहण्णगो पदेसउदओ। एइंदिय-थावर-अपज्जत्त-णीचागोदाणं मदिआवरणभंगो । णवरि एइंदिय-थावराणं सव्वपज्जत्तयदो। सुहमणामाए जहण्णगो पदेसउदओ कस्स? जो मदिआवरणस्स जहण्णपदेसवेदओ सो तम्हि भवे खुद्दाभवग्गहणं जीविदूण सुहमेइंदिएसु पज्जत्तएसु उववण्णो आणापाणपज्जतीए पज्जत्तयदो, तस्स पढमसमए सुहुमणामाए जहण्णगो पदेसउदओ। साहारणणामाए व कार्मण शरीरों सम्बन्धी बन्धन व संघात, छह संस्थान, छह संहनन, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उद्योत, उच्छ्वास, प्रशस्त व अप्रशस्त विहायोगति, त्रस, बादर. पर्याप्त, प्रत्येकशरीर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुस्वर, आदेय, अनादेय, यशकीति, अयशकीर्ति और निर्माण; इन नामकर्मोंके जघन्य प्रदेश उदयकी प्ररूपणा औदारिकशरीरके समान है। आहारकशरीर, आहारकशरीरांगोपांग, आहारकशरीरबन्धन व संघातका जघन्य प्रदेश उदय किसके होता है ? अभव्यसिद्धिक प्रायोग्य जघन्य [ सत्कर्म ] को करके, चार वार कषायोंको उपशमा कर अन्तिम भवग्रहणमें कुछ कम पूर्वकोटि काल तक संयमका पालन कर आहारकशरीररूपमें उत्तर शरीरकी विक्रिया करके जो सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुआ है उसके उनका जघन्य प्रदेश उदय होता है। चार आनुपूर्वी नामकर्मोंका जघन्य प्रदेश उदय किसके होता है ? वह प्रथम समयवर्ती तद्भवस्थके होता है । आतप नामकर्मका जघन्य प्रदेश उदय किसके होता है ? मतिज्ञानावरण संबंधी क्षपितकर्माशिकके विधानसे आकर जो आतप नामकर्मके वेदकोंमें उत्पन्न होकर आनप्राणपर्याप्तिसे पर्याप्त हुआ है उस प्रथम समयवर्ती पर्याप्तके उसका जघन्य प्रदेश उदय होता है। एकेन्द्रिय, स्थावर, अपर्याप्त और नीचगोत्रकी प्ररूपणा मतिज्ञानावरणके समान है। विशेष इतना है कि एकेन्द्रिय और स्थावरका जघन्य प्रदेश उदय सर्व पर्याप्तियोंसे पर्याप्त हुए जीवके होता है । सूक्ष्म नामकर्मका जघन्य प्रदेश उदय किसके होता है ? जो मतिज्ञानावरणके जघन्य प्रदेशका वेदक उस भवमें क्षुद्रभवग्रहण काल जीवित रहकर सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तकोंमें उत्पन्न हो आनप्राणपर्याप्तिसे पर्याप्त हुआ है उसके प्रथम समयमें सूक्ष्म नामकर्मका जघन्य प्रदेश उदय होता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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