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उदयाणुयोगद्दारे ठिदिउदयपमाणाणुगमो
( २८९ विसेसा० । अरदि-सोगवेदया थोवा । असादवेदया विसे० । के० मेत्तेण? पवाइज्जतेण उवदेसेण संखेज्जजीवमेत्तेण विसे० । अण्णण : उवदेसेण असंखे० भागमेत्तेण विसे० । एदाणि पयडिउदीरणअप्पाबहुआदो पयडिउदयअप्पाबहुअस्स णाणताणि । भुजगारपदणिवखेव -वड्ढीओ णत्थि । जहा पयडिट्ठाणउदीरणा तहा पयडिट्ठाणउदओ वि कायव्वो। एवं पयडिउदओ समत्तो।
एत्तो टिदिउदओ दुविहो मूलपयडिटिदिउदओ उत्तरपयडिदिदिउदओ चेदि । मूलपयडिटिदिउदए अट्ठपदं--उदओ दुविहो पओअसा टिदिक्खएण चेदि । दिदिक्खओ उदओ सुगमो । जो सो पओअसा उदओ सो दुविही संपत्तीदो सेचीयादो च। संपत्तीदो* एगा दिदी उदिण्णा, संपहि उदिण्णपरमाणू णमेगसमयावट्ठाणं मोत्तूण दुसमयादिअवट्ठाणंतराणुवलंभादो। सेचीयादो अणेगाओ द्विदीओ उदिण्णाओ, एण्हि जं पदेसग्गं उदिण्णं तस्स दव्वट्टियणयं पडुच्च पुब्विल्लभावोवयारसंभवादो। एदेण अट्ठपदेण द्विदिउदयपमाणाणुगमो चउन्विहो उक्कस्सो अणुक्कस्सो जहण्णो अजहण्णो चेदि । णाणावरणस्स उक्कस्सओ टिदिउदओ तीसं सागरोवमकोडाकोडीओ दोहि आवलियाहि समऊणाहि ऊणाओ। दसणावरण-वेयणीय-अंतराइयाणं णाणा
अपेक्षा हास्य व रतिके वेदक असंख्यातवें भागसे विशेष अधिक हैं । अरति व शोकके वेदक स्तोक हैं । उनसे असातावेदनीयके वेदक विशेष अधिक हैं। कितने मात्रसे वे अधिक हैं ? पारम्परित उपदेशके अनुसार वे संख्यात जीव मात्रसे विशेष अधिक हैं। अन्य उपदेशके अनुसार वे असंख्यातवें भाग मात्रसे विशेष अधिक हैं । प्रकृति उदीरणा सम्बन्धी अल्पबहुत्वसे प्रकृति उदय सम्बन्धी अल्पबहुत्वमें ये ही कुछ विशेषतायें हैं । भुजाकार, पदनिक्षेप और वृद्धि यहां नहीं हैं। जैसे प्रकृतिस्थान उदीरणा की गयी है वैसे ही प्रकृतिस्थान उदयको भी करना चाहिये । इस प्रकार प्रकति उदय समाप्त हआ।
यहां स्थितिउदय दो प्रकारका है-मूलप्रकृतिस्थितिउदय और उत्तरप्रकृतिस्थितिउदय । मूलप्रकृतिस्थितिउदयके विषयमें अर्थपद-प्रयोगजनित और स्थितिक्षयजनितके भेदसे उदय दो प्रकारका है । उनमें स्थितिक्षयजनित उदय सुगम है। जो वह प्रयोगजनित उदय है वह दो प्रकारका है-संप्राप्तिजनित और निषेकजनित । संप्रातिप्की अपेक्षा एक स्थिति उदीर्ण होती है, क्योंकि, इस समय उदयप्राप्त परमाणुओंके एक समय रूप अवस्थानको छोड़कर दो समय आदि रूप अवस्थानांतर पाया नहीं जाता । निषेककी अपेक्षा अनेक स्थितियां उदीर्ण होती हैं, क्योंकि, इस समय जो प्रदेशाग्र उदीर्ण हुआ है उसके द्रव्याथिक नयकी अपेक्षा पूर्वीयभावके उपचारकी सम्भावना है। इस अर्थदपके अनुसार स्थिति उदयप्रमाणानुगम चार प्रकार है-उत्कृष्ट, अनुत्कृष्ट, जघन्य और अजघन्य । ज्ञानावरणका उत्कृष्ट स्थितिउदय एक समय कम दो आवलियोंसे हीन तीस कोडाकोडि सागरोपम प्रमाण है । दर्शनावरण, वेदनीय और अन्तरायके स्थितिउदयका प्रमाण ज्ञानावरणके
* अ काप्रत्योः 'अणेग' इति पाठः। ४ प्रतिष 'णाणताणं' इति पाठः। अ-काप्रत्यो: •णिक्खेवो' इति पाठः । अ-काप्रत्योः 'चे द्विदिक्खाओदओ' इति पाठः। ताप्रतौ'संपत्ती' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only
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