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उक्कमाणुयोगद्दारे पदेस उदीरणा
( २५९
साहारणणामाणं जहण्णपदेसउदीरओ को होदि ? बादरेइंदिओ सव्वसंकिलिट्ठो । सुहुमणामाए जहण्णपदेसउदीरओ को होदि ? सुहुमेइंदिओ सव्वसंकिलिट्ठो । अपज्जत्तणामाए जहण्णपदेसउदीरओ को होदि ? मणुस्सो उक्कस्सियाए अपज्जत्तणिव्वतीए उववण्णो चरिमसमयतब्भवत्थो उक्कस्ससंकिलिट्ठो । तित्थयरस्स जहण्णपदेसउदीरओ को होदि ? पढमसमयकेवलिमादि काढूण जाव आवज्जिदकरणस्स अकात्ति । एवं जहण्णसामित्तं समत्तं । एगजीवेण कालो अंतरं च सामित्तादो रओ साहेदूण भाणियव्वं ।
णाणाजीवेहि भंगविचओ दुविहो उक्कस्सपदभंगविचओ जहण्णपदभंगविचओ चेदि । एदेसि दोण्णं पि भंगविचयाणं अट्ठपदं सामित्तादो साहेदूण भाणियव्वं । गाणाजीवेहि कालो अंतरं च सामित्तादो साहेदूण भाणिदव्वं ।
एतो साणिसयासो दुविहो सत्थाणसण्णियासो परत्थाणसण्णियासो चेदि । तत्थ सत्थासणास । तं जहा --मदिआवरणस्स उवकस्सपदेसमुदीरेंतो सुद-मणपज्जवकेवलणाणावरणाणं णियमा उक्कस्सपदेसमुदीरेदि । ओहिणाणावरणस्स सिया उक्कस्सं सिया अणुक्कस्सं उदीरेदि । जदि अणुक्कस्सं णियमा असंखेज्जगुणहीणं । एवं सेस
जीव आपके जघन्य प्रदेशका उदीरक होता है । स्थावर और साधारण नामकर्मोंके जघन्य प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? वह सर्वसंक्लेशको प्राप्त हुआ बादर एकेन्द्रिय जीव होता है । सूक्ष्म नामकर्मके जघन्य प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? वह सर्वसंक्लेशको प्राप्त हुआ सूक्ष्म एकेन्द्रिय जीव होता है। अपर्याप्त नामकर्मके जघन्य प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? जो उत्कृष्ट अपर्याप्त निर्वृत्तिसे उत्पन्न होकर तद्भवस्थ रहनेके अन्तिम समयमे वर्तमात है ऐसा उत्कृष्ट
क्लेशको प्राप्त हुआ मनुष्य अपर्याप्तके जघन्य प्रदेशका उदीरक होता है । तीर्थंकर प्रकृति जघन्य प्रदेशका उदीरक कौन होता है ? प्रथम समयवर्ती केवलीको आदि करके जब तक वह आवर्जित करणको नहीं करता है तब तक तीर्थंकर प्रकृतिके जघन्य प्रदेशका उदीरक होता है । इस प्रकार जघन्य स्वामित्व समाप्त हुआ । एक जीवकी अपेक्षा काल और अन्तरकी प्ररूपणा स्वामित्व से सिद्ध करके कहलाना चाहिये या पढवाना चाहिये ।
नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय दो प्रकार है- उत्कृष्ट-पद-भंगविचय और जघन्य-पदभंगविचय । इन दोनों ही भंगविचयोंके अर्थपदका कथन स्वामित्वसे सिद्ध करके करना चाहिये । नाना जीवोंकी अपेक्षा काल और अन्तरका भी कथन स्वामित्वसे सिद्ध करके ( शिष्योंसे कहलाना चाहिये |
यहां संनिकर्ष दो प्रकार है- स्वस्थान संनिकर्ष और परस्थान संनिकर्ष । इनमें स्यस्थान संनिकर्ष प्ररूपणा करते हैं । यथा -- मतिज्ञानावरणके उत्कृष्ट प्रदेशकी उदीरणा करनेवाला नियमसे श्रुतज्ञानावरण, मन:पर्ययज्ञानावरण और केवलज्ञानावरणके उत्कृष्ट प्रदेशकी उदीरणा करता है । वह अवधिज्ञानावरणके कदाचित् उत्कृष्ट और कदाचित् अनुत्कृष्ट प्रदेशकी उदीरणा करता है। यदि वह उसके अनुत्कृष्ट प्रदेशकी उदीरणा करता है तो नियमसे असंख्यातगुणे हीनकी करता है । इसी प्रकार शेष चार ज्ञानावरण प्रकृतियोंकी विवक्षामें भी संनिकर्षका कथन * प्रतिषु ' आकारओ ' इति पाठ: ।
तातो 'उक्कस्सपदमुदीरेदि ' इति पाठ: ।
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