Book Title: Shatkhandagama Pustak 15
Author(s): Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
Publisher: Jain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur

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Page 317
________________ २८२) छक्खंडागमे संतकम्म ट्ठिदिउवसामणाए जहा उत्तरपयडिट्ठिदिउदीरणाए परूवणा कदा तहा कायव्वा । एवं द्विदिउवसामणा समत्ता। अणुभागउवसामणा दुविहा मूलपयडिअणुभागुवसामणा उत्तरपयडिअणुभागुवसामणा चेदि । मूलपयडिअणुभागुवसामणा सुगमा। उत्तरपयडिअणुभागुवसामणाए पयदं- तत्थ उक्कस्सेण जहा उक्कस्सओ अणुभागसंतकम्मस्स पमाणाणुगमो कदो तहा उक्कस्सओ अणुभागुवसामणापमाणाणुगमो कायव्वो। जहा अक्खवय-अणुवसामयपाओग्गो जहण्णओ अणुभागसंतकम्मपमाणाणुगमो कदो तहा जहण्णगो अणुभागुवसामणापमाणाणुगमो कायव्वो। सामित्तं कालो अंतरं णाणाजीवेहि भंगविचओ कालो अंतरं सण्णियासो च जहा अणुभागसंतकम्मस्स परूविदो तहा अणुभागुवसामणाए वि परूवेयव्वो । एत्तो अणुभागुवसामणाए तिव्वं-मंदप्पाबहुअं। तं जहा- उक्कस्सेण चउसद्रुिपदेहि जहा उक्कस्सए अणुभागबंधे अप्पाबहुअं कदं तहा एत्थ वि कायव्वं । एवं जहण्णं पि कायव्वं । एवमणुभागउवसामणा समत्ता । पदेसउवसामणा जाणिदूण परूवेयव्वा । विपरिणामउवक्कमो चउविहो पगदिविपरिणामणा द्विदिविपरिणामणा अणुभागविपरि० पदेसविपरि० चेदि । पयडिविपरिणामणा दुविहार मूलपयडिविपरिणामणा चाहिये । उत्तरप्रकृतिस्थितिउपशामनाकी प्ररूपणा जैसे उत्तरप्रकृतिउदीरणामें की गयी है वैसे ही यहां भी करना चाहिये । इस प्रकार स्थिति उपशामना समाप्त हुई । अनुभाग उपशामना दो प्रकारकी है- मूलप्रकृतिअनुभागउपशामना और उत्तरप्रकृतिअनुभागउपशामना। इनमें मूलप्रकृतिअनुभागउपशामना सुगम है। उत्तरप्रकृतिअनुभागउपशामना प्रकृत है- उसमें उत्कर्षसे जैसे उकृष्ट अनुभागसत्कर्मका प्रमाणानुगम किया गया है वैसे ही उत्कृष्ट अनुभागउपशामनाके प्रमाणानुगमको करना चाहिये। जिस प्रकार अक्षपक और अनुपशामक प्रायोग्य जघन्य अनुभागसत्कर्मका प्रमाणानुगम किया गया है उसी प्रकारसे जघन्य अनुभागउपशामनाके प्रमाणानुगमको करना चाहिये। स्वामित्व, एक जीवकी अपेक्षा काल व अन्तर, नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय, काल, अन्तर और संनिकर्षकी प्ररूपणा जैसे अनुभागसत्कर्ममें की गयी है वैसे ही उसे अनुभागउपशामनामें भी करना चाहिये। यहां अनुभागउपशामनामें तीव्र-मन्दताके अल्पबहुत्वकी प्ररूपणा करते हैं। यथा- उत्कर्षसे चौसठ पदोंके द्वारा जिस प्रकार उत्कृष्ट अनुभागबन्धमें अल्पबहुत्व किया गया है वैसे ही यहां भी उसे करना चाहिये । इसी प्रकारसे उसके जघन्य अल्पबहुत्वको भी करना चाहिये । इस प्रकार अनुभागउपशामना समाप्त हुई । प्रदेश उपशामनाकी प्ररूपणा जानकर करना चाहिये । विपरिणाम उपक्रम चार प्रकारका है- प्रकृतिविपरिणामना, स्थितिविपरिणामना, अनुभागविपरिणामना और प्रदेशविपरिणामना । इनमें प्रकृतिविपरिणामना दो प्रकार है- मूलप्रकृति 0 अ-का-ताप्रतिषु त्रुटितोऽयं अग्रिम 'दुविहा ' पदपर्यन्तः पाठो मप्रतितोऽत्र योजितः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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