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छक्खंडागमे संतकम्म
भुजगारो पदणिक्खेवो वड्ढीउदीरणा च णत्थि, एगेगपयडिअधियारादो। एवमेगेगपयडिउदीरणा समत्ता।
संपहि पयडिट्ठाणसमुक्कित्तणं कस्सामो। अट्ठविह-सत्तविह-छव्विह-पंचविहदुविह-उदीरणा त्ति पंचपयडिट्ठाणाणि उदोरणाए होंति । तं जहा- सव्वाओ पयडीओ उदीरंतस्स अट्टविहउदीरणा होदि । आउएण विणा सत्तविहउदीरणा होइ । आउअवेयणीएहि विणा अप्पमत्तादिसु छविहउदीरणा होदि। मोहाउअ-वेयणीयकम्मेहि विणा खीणकसायम्हि उवसंतकसाए च पंचविहउदोरणा होदि। णाणावरण-दसणावरणवेयणीय-मोहाउअ-अंतराइएहि विणा सजोगकेवलिम्हि दोण्णमुदीरणा होदि । एवं ट्ठाणसमुक्कित्तणा समत्ता।
सामित्तं- अट्ठण्णमुदीरओ को होदि ? अण्णदरो पमत्तो, जस्स आउअंण होदि उदयावलियपविट्ठ। सत्तण्णमुदीरओ को होदि ? अण्णदरो पमत्तो, जस्स आउअंउदयावलियं पविळं। छण्णमुदीरओ को होदि ? अप्पमत्तो सकसाओ। पंचण्णमुदीरओ को होदि ? छदुमत्थो वीयराओ आवलियचरिमसमयस्स हेट्ठा। दोण्णमुदीरओ को होदि ? उप्पण्णणाण-दसणहरो सजोगिकेवली । एवं सामित्तं समत्तं ।
भुजाकार, पदनिक्षेप और वृद्धिउदीरणा नहीं है, क्योंकि, यहां एक एक प्रकृतिका अधिकार है। इस प्रकार एक-एकप्रकृतिउदीरणा समाप्त हुई।
अब प्रकृतिस्थानोंका समुत्कीर्तन करते हैं - आठ कर्मोकी, सात कर्मोंकी, छह कर्मोकी, पांच कर्मोंकी और दो कर्मोकी उदीरणा इस प्रकार उदीरणाके पांच प्रकृतिस्थान हैं। यथा-सब प्रकृतियोंकी उदीरणा करनेवालेके आठ प्रकृतिक उदीरणा होती है । आयुके विना सात प्रकृतिक उदीरणा होती है । आयु और वेदनीयके विना अप्रमत्त आदि गुणस्थानोंमें छह प्रकृतिक उदीरणा होती है । मोहनीव, आयु और वेदनीय कर्मोंके विना क्षीणकषाय और उपशान्तकषाय गुणस्थानोंमें पांच प्रकृतिक उंदीरणा होती है। ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु और अन्तरायके विना सयोगकेवली गुणस्थानमें दो प्रकृतिक उदीरणा होती है । इस प्रकार स्थानसमुत्कीर्तना समाप्त हुई।
___ स्वामित्व – आठ कर्मोका उदीरक कौन होता है ? उनका उदीरक अन्यतर प्रमत्त जीव होता है, जिसका आयु कर्म उदयावलीमें प्रविष्ट नहीं है । सात कर्मोंका उदीरक कौन होता है ? अन्यतर प्रमत्त जीव उनका उदीरक होता है, जिसका आयु कर्म उदयावलीमें प्रविष्ट है । छहका उदीरक कौन होता है ? अप्रमत्त सकषाय जीव उनका उदीरक होता है। पांचका उदीरक कौन होता है ? उनका उदीरक छद्मस्थ वीतराग जीव होता है, मात्र वह क्षीणमोहके कालमें एक आवलीके चरम समय शेष रहनेके पूर्व उनकी उदीरणा करता है। दोका उदीरक कौन होता है ? उत्पन्न हुए ज्ञान व दर्शनका धारक सयोगकेवली उनका उदीरका होता है । इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ।
४ घाईण छ उमत्था उदीरगा रागिणो य मोहस्स । तइयाऊण लमत्ता जोगता उत्ति दोण्हें
.च ।। क० प्र०४-४. Jain Education International For Private & Personal Use Only
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