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________________ ४८ ) छक्खंडागमे संतकम्म भुजगारो पदणिक्खेवो वड्ढीउदीरणा च णत्थि, एगेगपयडिअधियारादो। एवमेगेगपयडिउदीरणा समत्ता। संपहि पयडिट्ठाणसमुक्कित्तणं कस्सामो। अट्ठविह-सत्तविह-छव्विह-पंचविहदुविह-उदीरणा त्ति पंचपयडिट्ठाणाणि उदोरणाए होंति । तं जहा- सव्वाओ पयडीओ उदीरंतस्स अट्टविहउदीरणा होदि । आउएण विणा सत्तविहउदीरणा होइ । आउअवेयणीएहि विणा अप्पमत्तादिसु छविहउदीरणा होदि। मोहाउअ-वेयणीयकम्मेहि विणा खीणकसायम्हि उवसंतकसाए च पंचविहउदोरणा होदि। णाणावरण-दसणावरणवेयणीय-मोहाउअ-अंतराइएहि विणा सजोगकेवलिम्हि दोण्णमुदीरणा होदि । एवं ट्ठाणसमुक्कित्तणा समत्ता। सामित्तं- अट्ठण्णमुदीरओ को होदि ? अण्णदरो पमत्तो, जस्स आउअंण होदि उदयावलियपविट्ठ। सत्तण्णमुदीरओ को होदि ? अण्णदरो पमत्तो, जस्स आउअंउदयावलियं पविळं। छण्णमुदीरओ को होदि ? अप्पमत्तो सकसाओ। पंचण्णमुदीरओ को होदि ? छदुमत्थो वीयराओ आवलियचरिमसमयस्स हेट्ठा। दोण्णमुदीरओ को होदि ? उप्पण्णणाण-दसणहरो सजोगिकेवली । एवं सामित्तं समत्तं । भुजाकार, पदनिक्षेप और वृद्धिउदीरणा नहीं है, क्योंकि, यहां एक एक प्रकृतिका अधिकार है। इस प्रकार एक-एकप्रकृतिउदीरणा समाप्त हुई। अब प्रकृतिस्थानोंका समुत्कीर्तन करते हैं - आठ कर्मोकी, सात कर्मोंकी, छह कर्मोकी, पांच कर्मोंकी और दो कर्मोकी उदीरणा इस प्रकार उदीरणाके पांच प्रकृतिस्थान हैं। यथा-सब प्रकृतियोंकी उदीरणा करनेवालेके आठ प्रकृतिक उदीरणा होती है । आयुके विना सात प्रकृतिक उदीरणा होती है । आयु और वेदनीयके विना अप्रमत्त आदि गुणस्थानोंमें छह प्रकृतिक उदीरणा होती है । मोहनीव, आयु और वेदनीय कर्मोंके विना क्षीणकषाय और उपशान्तकषाय गुणस्थानोंमें पांच प्रकृतिक उंदीरणा होती है। ज्ञानावरण, दर्शनावरण, वेदनीय, मोहनीय, आयु और अन्तरायके विना सयोगकेवली गुणस्थानमें दो प्रकृतिक उदीरणा होती है । इस प्रकार स्थानसमुत्कीर्तना समाप्त हुई। ___ स्वामित्व – आठ कर्मोका उदीरक कौन होता है ? उनका उदीरक अन्यतर प्रमत्त जीव होता है, जिसका आयु कर्म उदयावलीमें प्रविष्ट नहीं है । सात कर्मोंका उदीरक कौन होता है ? अन्यतर प्रमत्त जीव उनका उदीरक होता है, जिसका आयु कर्म उदयावलीमें प्रविष्ट है । छहका उदीरक कौन होता है ? अप्रमत्त सकषाय जीव उनका उदीरक होता है। पांचका उदीरक कौन होता है ? उनका उदीरक छद्मस्थ वीतराग जीव होता है, मात्र वह क्षीणमोहके कालमें एक आवलीके चरम समय शेष रहनेके पूर्व उनकी उदीरणा करता है। दोका उदीरक कौन होता है ? उत्पन्न हुए ज्ञान व दर्शनका धारक सयोगकेवली उनका उदीरका होता है । इस प्रकार स्वामित्व समाप्त हुआ। ४ घाईण छ उमत्था उदीरगा रागिणो य मोहस्स । तइयाऊण लमत्ता जोगता उत्ति दोण्हें .च ।। क० प्र०४-४. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001814
Book TitleShatkhandagama Pustak 15
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Balchandra Shastri
PublisherJain Sanskruti Samrakshak Sangh Solapur
Publication Year1994
Total Pages488
LanguagePrakrit, Hindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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