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उवक्कमाणुयोगद्दारे उदीरयाणमप्पाबहुअं सिया उदीरया च अणुदीरया च । एवं णाणाजीवेहि भंगविचओ समत्तो।
णाणाजीवेहि कालो- सव्वेसि कम्माणं उदीरणा केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवे पडुच्च सव्वद्धा । एवं कालो समत्तो।
अंतरं णत्थि । अप्पाबहुअं पयदं । आउअस्स उदीरया थोवा। वेयणीयस्स उदीरया विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? चरिमावलियाए संचिदअणंतजीवमेत्तेण । मोहणीयस्स उदीरया विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? अप्पमत्त-अपुव्व-अणियट्टिसुहमसांपराइयजीवमेतण। णाणावरण-दसणावरण-अंतराइयाणमुदीरया विसेसाहिया। केत्तियमेत्तेण ? उवसंत-खीणकसायमेत्तेण । णामा-गोदाणमुदीरया विसेसाहिया । केत्तियमेत्तेण ? सजोगिकेवलिमत्तेण।
णिरयगईए रइएसु सम्वेसि पि कम्माणमुदीरया तुल्ला, णिरंतरं तत्थ मरंताणमभावादो । कदाचि आउअस्स उदीरया थोवा, सेसकमाणं सरिसा विसेसाहिया । केत्तियमेतेण? चरिमावलियाए संचिदजीवमेतेण । एवं सव्वासिं गदीणं वत्तव्वं । णवरि तिरिक्खेसु सरिसा त्ति ण वत्तव्वं । मणुस्सेसु ओघं । एवमप्पाबहुअं समत्तं ।
कदाचित् बहुत उदीरक व एक अनुदीरक, तथा कदाचित् बहुत उदीरक व बहुत अनुदीरक होते हैं। इस प्रकार नाना जीवोंकी अपेक्षा भंगविचय समाप्त हुआ।
___ नाना जीवोंकी अपेक्षा काल- सब कर्मोंकी उदीरणा कितने काल तक होती है ? नाना जीवोंकी अपेक्षा सर्वदा होती है । इस प्रकार काल समाप्त हुआ।
___ नाना जीवोंकी अपेक्षा अन्तर नहीं है । अल्पबहुत्व प्रकृत है- आयु कर्मके उदीरक स्तोक हैं । वेदनीयके उदीरक विशेष अधिक हैं। कितने मात्रसे अधिक हैं? अन्तिम आवलीमें संचित अनन्त जीवोंके प्रमाणसे अधिक हैं। मोहनीय कर्मके उदीरक विशेष अधिक हैं। कितने मात्रसे अधिक हैं ? अप्रमत्त, अपूर्वकरण, अनिवृत्तिकरण और सूक्ष्मसाम्परायिक जीवोंके प्रमाणसे विशेष अधिक हैं । ज्ञानावरण दर्शनावरण और अन्तरायके उदीरक विशेष अधिक हैं। कितने मात्रसे अधिक हैं ? उपशान्तकषाय और क्षीणकषाय जीवोंके प्रमाणसे अधिक हैं। नाम व गोत्रके उदीरक विशेष अधिक हैं। कितने मात्रसे अधिक हैं ? सयोगकेवलियोंके प्रमाणसे अधिक हैं।
नरकगतिमें नारकियोंमें सभी कर्मोके उदीरक तुल्य हैं, क्योंकि वहां निरन्तर मरनेवाले जीवोंका अभाव है । कदाचित् वहां आयु कर्मके उदीरक स्तोक हैं और शेष कर्मोंके उदीरक समान होकर आयु कर्मके उदीरकोंकी अपेक्षा विशेष अधिक होते हैं ? कितने मात्रसे विशेष अधिक होते हैं ? अन्तिम आवलीके संचित जीवोंके प्रमाणसे वे विशेष अधिक होते हैं । — सदृश होते हैं ' ऐसा नहीं कहना चाहिये । मनुष्योंकी प्ररूपणा ओघके समान है । इस प्रकार अल्पबहुत्व समाप्त हुआ ।
४ काप्रती चरिमावलिये', ताप्रती 'चरिमावलिय' इति पाठः । Jain Education international
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