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छवखंडागमे संतकम्म
गोदस्स सागरोवमसदपुधत्तं, उच्चागोदस्स उदीरणंतरमुक्कस्सेण असंखेज्जा पोग्गलपरियट्टा । एवमेगजीवेण अंतरं समत्तं ।
___णाणाजीवेहि भंगविचओ वुच्चदे। तत्थ अट्टपदं- जेसि कम्ममत्थि तेसु पयदं, अकम्मेहि अव्ववहारो। एदेण अट्ठपदेण पंचण्णं णाणावरणीयाणं सिया सव्वे जीवा उदीरया, सिया उदीरया च अणुदीरयो च, सिया उदीरया च अणुदीरया च । एवं तिण्णि भंगा। चदुदंसणावरणीय-तेजा-कम्मइयसरीर-वण्ण-गंध-रस-फास-अगुरुअलहअ-थिराथिर-सुहासुह-णिमिण-पंचंतराइयाणं णाणावरणभंगो। णिहादीणं पंचण्णं पि उदीरया च अणुदीरया च णियमा अस्थि । णिरयगइ-देवगईसु णिद्दा-पयलाणं सिया सव्वे जीवा अणुदीरया, सिया अणुदीरया च उदीरओ च, सिया अणुदीरया च उदीरया च । सव्वे जीवा सादस्स असादस्स च णियमा उदीरया च अणुदीरया च। रइएसु सादस्स सिया सव्वे जीवा अणुदीरया, अणुदीरया* च उदीरगो च, अणुदीरया च उदीरया च । णेरइयवज्जा जे पमत्ता तसा ते सादस्स सिया सव्वे उदीरया, उदीरया च अणुदीरगो च, उदीरया च अणुदीरया च । रइया असादस्स सिया सव्वे उदीरया, उदीरया च अणुदीरओ च, उदीरया च अणुदीरया च । रइयवज्जा सेसा जे पमत्ता तसा ते
शतपृथक्त्व तथा ऊंच गोत्रकी उदीरणाका अन्तर असंख्यात पुद्गलपरिवर्तन प्रमाण है। इस प्रकार एक जीवकी अपेक्षा अन्तर समाप्त हुआ ।
नाना जीवों की अपेक्षा भंगविचयकी प्ररूपणा करते हैं। उसमें अर्थपद- जिन जीवोंके कर्मका अस्तित्व है वे प्रकृत हैं, कर्म रहित जीवोंसे व्यवहार नहीं है । इस अर्थपदसे पांच ज्ञानावरणीय प्रकृतियोंके कदाचित् सब जीव उदीरक, कदाचित् बहुत उदीरक व एक अनुदीरक, तथा कदाचित् बहुत उदीरक और बहुत अनुदीरक भी, इस प्रकारसे तीन भंग हैं। चार दर्शनावरणीय, तैजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, अगुरुल घु, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ,
र्माण और पांच अन्तराय, इन कर्मोकी प्ररूपणा ज्ञानावरणके समान है। निद्रा आदि पांचोंके नियमसे बहुत उदीरक और बहुत अनुदीरक हैं । नरकगति और देवगतिमें निद्रा और प्रचलाके कदाचित् सब जीव अनुदीरक, कदाचित् बहुत अनुदीरक व एक उदीरक, तथा कदाचित् बहुत अनुदीरक व बहुत उदीरक भी होते हैं। साता व असाता वेदनीयके नियमसे सब जीव उदीरक और अनुदीरक हैं। नारक जीवोंमें सातावेदनीयके कदाचित् सब जीव अनुदीरक, (कदाचित्) अनुदीरक बहुत व उदीरक एक, तथा (कदाचित्) अनुदीरक बहुत और उदीरक भी बहुत होते हैं। नारकियोंको छोडकर जो प्रमत्त (प्रमाद युक्त) त्रस जीव हैं वे सातावेदनीयके कदाचित् सब उदीरक, उदीरक बहुत व अनुदीरक एक, तथा उदीरक बहुत अनुदीरक भी होते हैं। नारकी जीव असातावेदनीयके कदाचित् सब उदीरक, उदीरक बहुत व अनुदीरक एक, तथा उदीरक बहुत व अनुदीरक भी बहुत होते हैं। नारकियोंको छोडकर शेष जो प्रमत्त (प्रमाद
० काप्रती ' अक्कमेहि ' इति पाठः । * कापतो 'अणुदीरया च अणुदीरया' इति पः।
ताप्रतो ‘पम- (ज्ज । त्ता' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only
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