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- छक्खंडागमे संतकम्म ..... पंचिदियतिरिक्खस्स सामण्णण एक्कवीस-छव्वीस-अट्ठावीस-एगुणतीस-तीसएक्कत्तीस-ति छउदीरणट्ठाणाणि । उज्जोवुदयविरहिदपंचिदियतिरिक्खस्स पंच उदीरणट्ठाणाणि । कुदो? तत्थ एक्कत्तीसाए उदयाभावादो। उज्जोवुदयसंजुत्तचिदियतिरिक्खस्स वि पंचेवुदीरणट्ठाणाणि । कुदो ? तत्थ अट्ठावीसट्ठाणाभावादो। उज्जोवुदयविरहिदपंचिदियतिरिक्खस्स भण्णमाणे तत्थ इदमेक्कवीसाएट्ठाणं*-तिरिक्खगइ-पंचिदियजादि-तेजा-कम्मइयसरीर-वण्ण-गंध-रस-फास-तिरिक्खगइपाओग्गाणुपुवी-अगुरुअलहुअ-तस-बादर-पज्जत्तापज्जत्ताणमेक्कदरं थिराथिर-सुभासुभ-सुभगदुभगाणमेक्कदरं आदेज्ज-अणादेज्जाणमेक्कदरं जसकित्ति-अजसकित्तीणमेक्कदरं णिमिणणामंच, एदासिमेक्कवीसपयडीणमेक्कं चेव हाणं । सरीरे गहिदे आणुपुव्वीमवणिय ओरालियसरीरं छण्णं संठाणाणमेक्कदरं ओरालियसरीरअंगोवंगं छण्णं संघडणाणमेक्कदरं उवघादं पत्तेयसरीरमिदि छसु पयडीसु पक्खित्तासु छन्वीसाए ट्ठाणं होदि । सरीरपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स अपज्जत्तमवणिय परघादे दोण्णं विहायगदीणमेक्कदरे च पक्खित्ते अट्ठावीसाए ठाणं होदि। आणपाणपज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स उस्सासे पक्खित्ते एगुणतीसाए ठाणं होदि। भासापज्जत्तीए पज्जत्तयदस्स सुस्सर-दुस्सरेसु एक्कदरे पक्खित्ते तीसाए ट्ठाणं होदि। एदिस्से तीसाए कालो जहण्णेण अंतोमुहुत्तं,
पंचेन्द्रिय तिर्यंचके सामान्यसे इक्कीस, छब्बीस, अट्ठाईस, उनतीस, तीस, और इकतीस प्रकृति रूप छह उदीरणास्थान होते हैं। उद्योतके उदयसे रहित पंचेन्द्रिय तिर्यंचके पांच उदीरणास्थान होते हैं, क्योंकि, उसके इकतीस प्रकृतिरूप उदीरणास्थानकी सम्भावना नहीं है। उद्योत उदयसे संयुक्त पंचेन्द्रिय तिर्यंचके भी पांच ही उदीरणास्थान होते हैं, क्योंकि, वहां अट्ठाईस -प्रकति रूप स्थानकी सम्भावना नहीं है। उद्योतके उदयसे रहित पंचेन्द्रिय तिर्यचके स्थानोंकी प्ररूपणा करते समय उनमें इक्कीस प्रकृति रूप स्थान यह है-तिर्यग्गति, पंचेन्द्रियजाति, तैजस व कार्मण शरीर, वर्ण, गन्ध, रस, स्पर्श, तिर्यग्गतिप्रायोग्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, त्रस, बादर, पर्याप्त व अर्याप्तमेंसे एक, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, सुभग और दुर्भगमेंसे एक, आदेय व अनादेयमेंसे एक, यशकीर्ति और अयशकीर्तिमेंसे एक तथा निर्माण नामकर्म; इन इक्कीस प्रकृतियोंका एक ही स्थान होता है । शरीरके ग्रहण कर लेनेपर आनुपूर्वीको कम करके औदारिकशरीर, छह संस्थानोंमेंसे एक, औदारिकशरीरांगोपांग, छह संहननोंमेंसे एक, उपघात और प्रत्येकशरीर, इन छह प्रकृतियोंको मिला देनेपर छब्बीस प्रकृतियोंका स्थान होता है। शरीरपर्याप्तिसे पर्याप्त हुए उक्त जीवकी उन छब्बीस प्रकृतियोंमेंसे अपर्याप्तको कम करके अर्थात् पर्याप्तके साथ परघात और दो विहायोगति में से एक, इन दो प्रकृतियोंको मिला देनेपर अट्ठाईस प्रकतियोंका स्थान होता है। उक्त जीवके आनप्राणपर्याप्तिसे पर्याप्त हो जानेपर उक्त प्रकृतियों में उच्छवासके मिला देनेपर उनतीस प्रकृतियों का स्थान होता है। भाषापर्याप्तिसे पर्याप्त होनेपर उपर्यत प्रकृतियों में सुस्वर और दुस्वरमें से किसी एकको मिला देनेपर तीस प्रकृतियों का स्थान
* कात्रौ 'पविता' इति पाठः ।
* काप्रती 'इदमेककवीसट्ठागाणं' इति पाठः।
ताप्रतौ 'परघाद' इति पाठः ।
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